________________
स्वप्न जोवाथी (साधुने ) चित्तनी समाधि थाय छे, तेथी आ चित्तसमाधिनुं बीजुं स्थानक जाणवू २ । तथा संज्ञान एटले संज्ञा, ते संज्ञा जो के हेतुवादोपदेशिकी, दृष्टिवादोपदेशिकी अने दीर्घकालिकोपदेशिकी एवा मेदवडे अनुक्रमे विकलेंद्रियने, सम्यग्दृष्टिने अने समनस्क( मनवाळा)ने होवाथी त्रण प्रकारनी छे, तो पण अहीं दीर्घकालिकोपदेशिकी संज्ञा ग्रहण करवानी छे, ते संज्ञा जेने होय ते संज्ञी एटले समनस्क (मन सहित ) कहेवाय छे. ते संज्ञीनुं जे ज्ञान ते संज्ञीज्ञान कहेवाय
छे. आ संज्ञीज्ञान आ अधिकार करेला (चालता) सूत्रमा बीजी रीते घटी शकतुंः नथी, तेथी जातिस्मरण ज्ञान ज लेवार्नु | छे. आधुं ज्ञान पूर्वे नहीं उत्पन्न थयेलं ते साधुने उत्पन्न थाय छे. शा माटे उत्पन्न थाय छ १ ते उपर कहे छे के-पूर्वना भवोने स्मरण करवा माटे. जेने पूर्व भवनुं स्मरण थयु होय तेने संवेग उत्पन्न थवाथी चित्तनी समाधि उत्पन्न थाय छे
तेथी आ त्रीजुं समाधिस्थान जाणवू ३ । तथा ते साधुने पूर्वे नहीं उत्पन्न थयेलं एबुं देवनुं दर्शन थाय छे; कारण के ते | देवो ते साधुना गुणो जोवाथी तेने दर्शन आपे छे. शा माटे दर्शन आपे छे एटले ते दर्शन- फळ १ ते उपर कहे छे के| दिव्य-श्रेष्ठ: देवर्द्धि-उत्तम परिवारादिक समृद्धिने, दिव्य देवद्युति-विशेष प्रकारनी (उत्तम) शरीर अने आभरणादिकनी कांति
तथा दिव्य देवानुभाव-उत्तम वैक्रिय शरीर करवु ए विगेरे प्रभावने जोवा माटे एटले आ सर्व देखाडवा माटे (देवो दर्शनः आपे छे). देवना दर्शनथी आगमना अर्थने विषे दृढ श्रद्धा अने धर्मने विष बहुमान थाय छे अने तेथी चित्तनी समाधि थाय | छे. आ प्रमाणे देवचं दर्शन चित्तसमाधिनुं चोथु स्थान जाणवू ४। तथा ते साधुने पूर्वे नहीं उत्पन्न थयेलु अवधिज्ञान उत्पन्न थाय छे. शा माटे उत्पन्न थाय छे ? ते उपर कहे छ के-नियमित (अमुक) द्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भावरूप अवधिवडे-मर्यादावडे