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________________ SPE चो) -समवाया सूत्र॥ -||३६ ॥ साधु होय तेने ( ते साधुने ) " असमुत्पन्नपूर्वा"-पूर्व अनादि अतीत( भूत )काळने विषे नहीं उत्पन्न थयेली (धर्म- चिंता)उत्पन्न थाय छे. जो कदाच पूर्वे उत्पन्न थइ होय तो अपार्ध पुद्गलपरावर्त सुधीमां ते (साधु )नुं अवश्य कल्याण (मोक्षगमन) थयु होय. तेथी पूर्वे उत्पन्न नहीं थयेली धर्मचिंता उत्पन्न थाय छे, एम कॉ. शा माटे आ (धर्मचिंता) उत्पन्न थाय ? ते उपर कहे छे के-सर्व एटले समग्र धर्म एटले जीवादिक पदार्थोनो स्वभाव, उपयोग, उत्पत्ति विगेरे अथवा श्रुतादिरूप धर्मने 'जाणित्तए-ज्ञपरिज्ञावडे जाणवाने माटे तथा जाणीने प्रत्याख्यानपरिज्ञावडे त्याग करवा लायक कर्मनो त्याग करवा माटे. अर्थात् धर्मना ज्ञाननी कारणभूत एवी धर्मचिंता उत्पन्न थाय छे. आ (धर्मचिंता) उपर । कहेली समाधिनुं उपर कहेल लक्षणवाळु स्थानक थाय छे. आ प्रथम स्थान जाणवू १। तथा स्वप्ननुं एटले निद्राने आधीन थयेला संकल्प-विकल्पना ज्ञाननुं दर्शन एटले अनुभवq ते स्वमदर्शन कहेवाय छे. आईं कल्याण (मोक्ष)नी प्राप्तिने सूचन करनारुं पूर्वे नहीं उत्पन्न थयेलं स्वप्नदर्शन उत्पन्न थाय छे, ते जेम भगवान महावीरस्वामीए अस्थिक गाममां शूलपाणि यक्षे करेला उपसर्गने छेडे (कांइक नेत्र वींचाता) जोयुं हतुं. शा माटे आधुं स्वप्नदर्शन थाय? ते उपर कहे छे-जे प्रकारे सत्य होय ते प्रकारे एटले सर्वथा व्यभिचार दोष रहित एवा ते स्वप्नना फळने जोवा-जाणवा माटे एटले के अवश्य थनार मुक्ति विगेरे शुभ स्वप्नना फळने जोवा माटे साधुने ते, स्वप्नदर्शन थाय छे. कोइ पुस्तकमां 'सुमिणं'ने ठेकाणे 'सुजाणं' एवो पाठ छे. त्यां आवो अर्थ करवो--सत्य अने अवश्य थनार 'सुयानं'-सुगतिने जोवा माटे-जाणवा माटे, अथवा 'सुज्ञानं'-थनार शुभ अर्थना ज्ञाननो अनुभव करवा माटे आईं स्वप्न आवे छे. वळी कल्याणने सूचवनार सत्य
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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