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________________ देवोना चैत्यवृक्षो आठ योजन ऊर्ध्व ऊंचा कह्या छे (३) । सुदर्शना नामनो जंबूवृक्ष आठ योजन ऊर्ध्व ऊंचो को छे (४) । गरुडदेवना आवासरूप कूटशाल्मली वृक्ष आठ योजन ऊर्ध्व ऊंचो कह्यो छे (५) । जंबूद्वीपनी जगती आठ योजन ऊर्ध्व ऊंची कही छे (६) । केवळीसमुद्घात आठ समयनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे- पहेले समये दंड करे, बीजे समये कपाट करे, बीजे समये मंथ करे, चोथे समये मंथना आंतराओ पूरे, पांचमे समये मंथना आंतरानुं संहरण करे ( काढी नांखे), छठे समये मंथनुं संहरण करे, सातमे समये कपाटनुं संहरण करे अने आठमे समये दंडनुं संहरण करे. त्यारपछी आत्मा शरीरमां रहेलो थाय ( आत्माना प्रदेशो शरीरमां ज समाइ जाय ) ( ७ ) । पुरुषोने मध्ये आदेय नामकर्मवाळा ( मान्य करवा लायक ) पार्श्वनाथ अरिहंतने आठ गणो अने आठ गणधरो हता, तेना नाम आ प्रमाणे- " शुभ, शुभघोष, वसिष्ठ, ब्रह्मचारी, सोम, श्रीधर, वीरभद्र अने यश ॥१॥ ( ८ ) । आठ नक्षत्रो चंद्रनी साथै प्रमर्द ( बच्चे थड़ने गमन करवा ) ना •योगने पामे छे, ते नक्षत्रो आ छे – कृत्तिका, रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, चित्रा, विशाखा, अनुराधा अने ज्येष्ठा ( ९ ) । आ रत्नप्रभा पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी आठ पल्योपमनी स्थिति कही छे (१) । चोथी पृथ्वीमां केटलाक नारकीओनी आठ सागरोपमनी स्थिति कही छे (२) । केटलाक असुरकुमार देवोनी आठ पल्योपमनी स्थिति कही छे (३) । सौधर्म अने ईशान कल्पने विषे केटलाक देवोनी आठ पल्योपमनी स्थिति कही छे ( ४ ) | ब्रह्मलोक कल्पनेविषे केटलाक देवोनी आठ सागरोपमनी स्थिति कही छे ( ५ ) । जे देवो अर्चि, अर्चिमालि, वैरोचन, प्रभंकर, चंद्राभ, सूर्याभ, सुप्रतिष्ठाभ, अगिचाभ, रिष्टाभ, अरुणाभ अने अरुणोत्तरावतंसक नामना विमानमां देवपणे उत्पन्न थया
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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