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बंधायेला ते कर्मप्रदेशोने खेरवी नांखे छे. आ समुद्घातो अहीं वेदनादिकना भेदवडे छ कह्या छे. तेमा पहेलो जे वेदना समुद्घात छे ते असातावेदनीय कर्मना आश्रयवाळो छ, बीजो कषायसमुद्घात छे ते कषायनामना चारित्रमोहनीय कर्मना
यवाळो छेत्रीजो मारणांतिक समुद्घात छे ते अंतमहत्तं शेष रहेला आयुष्यकमेंना आश्रयवाळो छ, बाकीना वैक्रिय. तैजस अने आहारक ए नामना त्रण समुद्घात छे ते शरीरनामकर्मना आश्रयवाळा छे, तेमां वेदनासमुद्घातवडे व्याप्त (सहित) थयेलो जीव वेदनीयकर्मना पुद्गलोर्नु शाटन (खेरवq ) करे छे, कषायसमुद्धातवडे व्याप्त थयेलो जीव कषायना पुद्गलोनुं शाटन करे छे, मारणांतिक समुद्धातवडे व्याप्त थयेलो जीव आयुष्यकर्मना पुद्गलोनो घात करे छे, वैक्रियसमुद्घातथी व्याप्त थयेलो जीव आत्मप्रदेशोने शरीरमांथी बहार काढीने ( ते प्रदेशोनो) शरीरनी जेटली उंचाइ अने जाडाइ होय तेटला प्रमाणवाळो अने लंबाइमां संख्याता योजन प्रमाणवाळो दंड बनावे छे, बनावीने पूर्वे बांधेला वैक्रियशरीरनामकर्मना पुद्गलोने स्थूळना अनुक्रमे ( एटले प्रथम घणा मोटा होय तेने, पछी तेनाथी नाना, पछी तेनाथी नाना ए रीते) शाटन करे छे-खेरवे छे. ए ज प्रमाणे तैजस अने आहारकनामना समुद्घातनुं पण व्याख्यान कर. (५) । तथा ' अर्थावग्रह '-अर्थन एटले सामान्य रीते जेर्नु स्वरूप कही न शकाय एवा शब्दादिकनुं 'अव'-प्रथम एटले व्यंजनावग्रहनी पछी तरत ज जे ग्रहण करवू एटले जाणवू ते अर्थावग्रह कहेवाय छे. ते अर्थावग्रह निश्चय नयनी अपेक्षाए एक समयनो अने | व्यवहारनयनी अपेक्षाए असंख्य समयनो होय छे. ते अर्थावग्रह श्रोत्रादिक पांच इंद्रियोवडे अने नोइंद्रिय(मन)वडे उत्पन्न (प्राप्त) थतो होवाथी छ प्रकारनो कह्यो छे (६)॥