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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ताल स्वर बांधि गन्धर्व गाने सुनावै बजे तार मृदङ्ग संगीत गावे, पढे भाट ठाढ़े महा विरदा बखाने, तमाशो दुनि आनि देखे सुजाने । इसी भांति पलिका जुको चार कीन्हों, सुपहिराय नेगिन विविध द्रव्य दीन्हों। रुपइया किते साज थिरमाजु दीन्ही, दुशाला दिये जो बड़े मोल लीन्हैं। दिये जरकसी जो सिरो पाय केते, दिये वस्त्र भूषण कहै कौन ते तें। दिये जोर पटुका जुचीरा जरकसी, किती झलझलाती जु पोशाक बक्शी। करे दान प्रहलादके पुत्र दानी, भवानी जुदा सो जसके निदानी । मयाराम सबही करे दान जैसो, करे कौन कविता वरणिके जुते सो। तहाँ परसराम किते दान करही, हृदय हर्ष परदुख दारिद हरही।