SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 424
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२२ *श्री लँबेचू समाजका इतिहास * दोहा बैठे सजि सजि शाह जहाँ सकल बरात घरात, इन्द्र सभा सम देखिये छवि वर्णी नहीं जात । जहाँ भाट ब्राह्मण वहाँ विविध भांति गुण गाय, भाउ कलाउत ताइफ रितु वसन्त सुखदाय । अतर अबीर गुलाब बरकेशर सकल सुगन्ध, तन मन अति आनन्द भज हितू मिल सत चंद । बैठे वह ठाकुराय ते जहाँ सकल मुख वृन्द, तिनमें दिपतु अलोलमणि मनो विराजत इन्द्र । दौलत भूषा बसनके कीन्हें बहुविधि ढेर, यह विवि बैठे संघपति मनोदिपत कुबेर । छिरकत रङ्ग गुलाब बहु उड़त सुगन्ध अबीर, बजत तार मृदंग ढफ सो हरषत सकल शरीर । छन्द भुजङ्ग सरीरो जहाँ जोर रस रंग रागे, सुपहिरे सवै लाल गुलाब वागे । उड़ावे अबीरो महा घूम करके, किते रंग छिरके सुपिचकारी भरके ।
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy