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*श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
दोहा बैठे सजि सजि शाह जहाँ सकल बरात घरात, इन्द्र सभा सम देखिये छवि वर्णी नहीं जात । जहाँ भाट ब्राह्मण वहाँ विविध भांति गुण गाय, भाउ कलाउत ताइफ रितु वसन्त सुखदाय । अतर अबीर गुलाब बरकेशर सकल सुगन्ध, तन मन अति आनन्द भज हितू मिल सत चंद । बैठे वह ठाकुराय ते जहाँ सकल मुख वृन्द, तिनमें दिपतु अलोलमणि मनो विराजत इन्द्र । दौलत भूषा बसनके कीन्हें बहुविधि ढेर, यह विवि बैठे संघपति मनोदिपत कुबेर । छिरकत रङ्ग गुलाब बहु उड़त सुगन्ध अबीर, बजत तार मृदंग ढफ सो हरषत सकल शरीर ।
छन्द भुजङ्ग सरीरो जहाँ जोर रस रंग रागे, सुपहिरे सवै लाल गुलाब वागे । उड़ावे अबीरो महा घूम करके, किते रंग छिरके सुपिचकारी भरके ।