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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ४२१
छन्द भुजंग प्रयात चहुँ ओर जिनके सुयश जोर छाये, कवि पंडितनि और गुण गान गाये । बुलावे जु पलिका जुको चारु फीनें, सुने साहु जेते सवै बोल लीने । आये साथी सहाई जो शोभा अपारी, चले संगले तुंग से को हजारी । मचो नोबतिनकोजु कोहरा मभारों, सु आयो मनों इन्द्र लेकर अखाड़ो। आये ऐसे पलिका जुको चार करने, मनो साजि फौजे चढ़े भूप लड़ने ।
दोहा भीर बरात घरातकी कहत लऊ कविराय, उमड़ि घुमड़ि घर मेघ घन रही घटा सीछाय :
सोरठा बैठे साजि सब साह दुहुको दल एक सौ इत संघई उमराव, उत अलोल मणि चौधरी।