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*श्री लंबेचू सगाजका इतिहास * सब संघपतिधनवरसनमंह बहुविध कियो। कहतलऊ कविराय जीती जग यश लियो।
दोहा किनी वारोटी सरस बहु विधि द्रव्य लुटाय, जनवासे डेरा दिये सो हिय अति हर्ष बढ़ाय । उतै चौधरी सुराजकी शोभ वरननि न जाय, जगमग जगमग होत छवि देखति हिय हर्षाय । विविध भांति बेदी रची मंडप छाय अनूप, जाकी शोभा कर बरण हरणे सुरनर भूप । अति अदभुद् खम्भा बने कोमल कदली स्वच्छ, वहु वस्त्र वस्त्रनि सो मढ़े जगमग ज्योति प्रत्यक्ष । दियो बुलौवा व्याहको तित बोले साह, आनन्द मंगल सुख सकल सुजिततितहर्ष उछाह । यथा जुगति जो व्याह की सो कीनी सर्वज्ञ, जनक समान अलोल मणि रचो जगतमें जज्ञ । कीनी जो नारे विविध करी चवैनी जोर, देय दान सबको सवै छये सुयश चहुँ ओर ।