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* श्री लंबेचू समाजका इतिहास * मसाले जगी जोरसे का हजारो। भयो चारिहुं चक्र उद्योत भारो॥ छुटै जोर आतसबाजी सुहाई । जुहथफूल मेहताब टोटा हवाई ॥ छुटै मोरके भोर चम्पाम्र हरषे । छुटै फुलझरी हर्ष तो जोर चरखे ॥ बजे बाजने सोत इ शक्रनी के । सुजिनके सुने कान सत्जी के । मचो शोर भारी चहुँ ओर भरजे । मनो मेघ घन साजके इन्द्र गरजे ॥ हृदय हर्षक द्रव्य गंजिनि लुटावे । भली भाँति पैसानि थैली छुटावे ।। ऐसो चौधरिनके संग संघपति धाये । मनन नक्रके दे रज सर चुओए । बरोठी भली माँति सो साज किनी । तहाँ चौधरी दाय जो जोर दीनी॥ दीने घोड़े जोर वरन सब बाबेन । सिरो पाय मोहरें रुपइया अति घेन ।