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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
सचे चक्र से चोधरी वो समाजा । सु आये मनोसिंह अनिरुद्ध राजा ॥ दोहा
करिके मिलेसु मूजरा कीये, सहित सनेह सुरंग । चले जु वारोटी करन, ले वारात सब संग || सजे वान निसान बहु माई मुरातबा जोर । सजी पालकी नोव तें करी कोतलनि कोर ||
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घंट शंख नारी सुभट, करी कोतलनि कोर । शोभाभई जोरि घम्सानजे, जोर मचो महासोर ॥ राजे सुभट संग गुजरते संग गुँजरते मति मान । सोभित है वान फहरात है निसान ||
छन्द भुजंग
किते वान नीसान फहरात घोरे । जरी जर कसी जर बलीने सुजोरे ॥ किते नौबते जोर घनघोर गाजे । नकार सु सहनार करनाल बाजे ॥ बजे झंझ तबलो सतो ताल रंगी । किते रण जु सिंघा बजे ढोल जंगी ॥