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________________ * श्री लंबेचू समाजका इतिहास * ३२३ देशे नामग्रहणके न्याय से अर से चारघातिया कर्म लिये | अकारसे अरि मोह और रकारसे रज रहस । रजसे ज्ञानावरण, दर्शनावरण और रहससे अन्तराय कर्म । इनका समुदाय सो अर जिस गिरिपर मुनियोंके चार घातिया कर्म नष्ट भये है, उससे ( यस्मिन् गिरौ नकारेण नष्टा अराः घाति कर्माणि सगिरनार : ) जिस पर्वत पर मुनियों के चार घातिकर्म नष्ट हुये, उसको गिरनार कहते हैं । यह सार्थक नाम है तथा रेवा नगर के निकट अथवा रेवानगर के राज्यमें होनेसे इसका नाम रेवत या रैवतक कहा । बुढ़ले गोत्रीय श्रीयुत कामता प्रसादजी जैन एम० आर० ए० एस० ने भाष्कर में लिखा है : - ऐतिहासिक साक्षी गिरिनार और उसके माहात्म्यकी प्राचीनताकी पोषक सर्व प्राचीन साक्षी वह ताम्रपत्र है, जिसे प्रोफेसर प्राणनाथने निम्नलिखित शब्दार्थ में पढ़ा है । ( रेवा नगरके राज्यका स्वामी सु० जातिका देव) ने बुशद्ने जर आया है, स्थान ( द्वारिका ) आया है। वह यदुराज ( कृष्ण ) के उसने मन्दिर बनवाया ।
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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