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________________ ३२४ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास # सूर्य ..... देव नेमि कि जो स्वर्ग समान रेवत पर्वतक देव हैं, उनको हमेशहके लिये अर्पण किया । प्रो० सा० इस लेख को ६०० से १९४० तक का अनुमान करते हैं, इससे रेवत पर्वत गिरनारकी पवित्रता और भगवान नेमिनाथ का सम्पर्क उससे स्पष्ट है और मौर्यकालीन शिला लेखोंसे भी स्पष्ट है, इससे गिरिनारको रेवत या रैवत्तक भी कहते हैं। श्री नेमिनाथ भगवानने वस्त्र त्याग जैनदिगम्बर दीक्षा धारण करी, इससे उसका नाम वस्त्राचल भया और (उर्ध्व जयन्त) भगवान नेमिनाथ अष्ट कमका नाशकर ऊर्ध्व माने ऊपर लोकशिखर सिद्धालयमें गमन किया और अष्ट कर्मोंको नष्टकर जय पाया । जिस स्थान से उस स्थान का नाम ( ऊर्जयन्त) पड़ा । और रमन्ते योगिनो शुद्ध स्वरूपे यस्मिन् ऐसा जो गिरि पर्वत) अर्थात् जिस गिरिपर मुनि लोग अपने शुद्ध स्वरूपमें समाधि लगाकर मन हो रमण करें, उससे रामगिरि कहा, और प्रकर्षकर सब तरह से दीप्तिमान है। पर्वत और नेमिनाथ इससे प्रभास नाम है, उस गिरिनार भगवान्‌को हमारे वैष्णव हिन्दू भाई
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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