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________________ ३२२ *श्री लँबेचू समाजका इतिहास * यादृशरूपः शिवोदृष्टः सूर्यविम्बेदिगम्बरः ६४ पवासन स्थितः सौम्यस्तथातं तत्रसंस्मरन् प्रतिष्ठाय महामूर्ति पूजयामास वासरम् ६५ मनोऽभीष्टार्थ सिद्धार्थ ततःसिद्धिभवाप्तवान् नेमिनाथ शिवेत्येवं नामचक्रे सवामनः ६६ सुराष्ट्र देशो विख्यातो गिरोरैवतकोमहान् उजयन्तगिरे मूर्मि इत्यादि इसी गिरनार पर्वतके नाम रैवतक, उञ्जयन्त, गिरनार, रामगिरि, वनाचल, प्रभास इत्यादि हैं और इसका अस्तित्व कौशाम्मीतक माना गया हो स्यात् इस गिरनार पर्वतका अस्तित्व कर्मभूमिकी आदिमें श्री ऋषभदेवके समय भी था, क्योंकि आदि पुराणमें श्री भरत महाराज चक्रवर्तीके दिग्विजयमें भी कथन आया है कि गिरनार भी पहुंचे थे। इन्दौरको प्रतिके पत्र १११५ भाकर श्री कामताप्रसादजी जैनने लिखा है दिग्विजय कथनमें देख सकते हैं। श्री नेमिनाथ भगवान्के पूर्व में भी मुनियों ने तपश्चरण कर ज्ञान प्राप्त किया। इसीसे इसका नाम निरिनार पड़ा। असे अरि मोह और रसे रज रहस नामक
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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