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________________ २४२ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * (सवैया ३१ सा) - पूरे ज्ञान ध्यानके यो जज्ञिनक जतवारकरै परकाज पर पीरन जोहरत हैं। देशपरदेशनिमें कीर्तियशपूरि रहो मोजेकरि भिक्षुकनि मानधन सो भरत है । दुर्गादास वंशहुअ अंश श्रीनरोत्तमके रायसिंघ शाहलच्छि सुकृत धरत हैं। कहैं लऊराइ चित्तमहामुख पाइ सु आछै दान दुनीमें चंदोरिया करत हैं।१५ ॥ कोउदार ए विक्रमाजीत थापो नेमीदासको शाह सराहत भूप करोरी । लमेचुहानकी रीतिलई जबतें तब दानकी उरट्ठ अनन्य दरोरी । उद्योत कहैं तुअ सिंघ को जोर न कोई रा मकरन्दलो लाञ्छिन जोरी । मंडनवंश भयो कुलमंडन सब शाहनिमें सिरदार वहोरी ॥ १६ ॥ कवित्त बजाज गोत्र का ( सवैया ३१ सा) करहल उद्यत उदार करतूतिनके जितवार साहिबके वंश साखि साखि सिरताज है। कुलके कलश कुलदीपक कुलमाहिं दिपें शोभाशील शर्मधरै धर्मकं समाज हैं। देवीदासनन्द मयाराम हरिकृष्णदास खेमकरन राजकरन
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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