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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * २४३ पर काज हैं। कहैं लउराइ दयादान अरु करनीको करहल सथान ऐसे राजत वजाज हैं ॥१७॥ अटेर के बजाज गिरधरवंश सूयमणि अंश गोवर्द्धन तिनहीक तेजपाल संत के समाज हैं। कुलके कलश कुलदीपक खड़गसेन अरुनन्दराम कीने जो सदाहीं परकाज है। मोजको उमेदराइ वेनीराम रतनपाल नेनमुखजूके शोभासुखनिके समाज हैं। कहैं लऊराई दयादान अरुकरनीको तखत अटेर बीच राजत बजाज है ॥ १८ ॥ शोभाशील राजभरै मंतकं समाज खरे करिवेको परकाज जिन राजने बताये हो। बड़े धर्मज्ञ ओ प्रतापी सर्वज्ञ ऑगे जीते जोरयज्ञ जग सजन सिहाये हो। भागमल्ल वंश हुअ अंशशाहभूपतिक शाहअखैराज लऊराइ कविगाये ही कुमति नसाई जो कीर्ति क्षिति छाई सो करनी बढ़ाई तो मदाई जीति आये हैं ॥१६॥ प्रथमअलोलमणिजूकं सुतवंशीधर मूलचन्द दयादान धर्म ही है धाम ।। धनपाल पालत हमेशह सब जीवनको हरिसिंह आछे सुजश लिवैया आठो जामकं ॥ केशरीजु सिंहसुत
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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