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________________ अर्थ-हे भगवन् ! चतुर्विंशति स्तव (लोगस्स उज्जोयगरे )के पठन करनेसे जीव क्या फल उत्पन्न करता है ? हे गौतम ! चतुर्विंशति स्तवका पाठ करनेसे जीव सम्यक्त्वकी विशुद्धि करता है क्योंकि-चतुर्विंशति तीर्थकरोकी स्तुति करनेसे जीव शुद्ध श्रद्धायुक्त हो जाता है ॥ अथ वंदना आवश्यक विषय ॥ वंदणएणं भत्ते जीवे किंजणयइ वंदणएणं नीया गोयं कम्मं खवेइ उच्चा गोयं कम्मं णिबंधइ सोहग्गं चणं अप्पडिहयं आणाफलं निव्वनेइ दाहिण भावं चणं जणयइ ॥ उ० सू० अ० २९ सू० १०॥ ___ अर्थ-वंदना करनेसे हेभगवन् ! जीवको क्या लाभ होता है ? वंदना करनेसे हे गौतम : आत्मा ऐसे कर्मोंका नाश कर देता है जिनसे नीच घरानेमें जन्म हो, और ऐसे कौंको उपार्जन करता है जिनसे उच्च घरानमें जन्म हो, फिर लोग उससे प्रीति करने लगते है और इसका परिणाम यह होता है कि वह अविकारी वा माननीय पुरुष समझा जाता है, और सब लोग उसकी भलाई चाहते हैं तथा उसके अनुकूल हो जाते है । __ अथ *प्रतिक्रमण आवश्यक विपय ॥ पडिक्कमणेणं भने जीवे किं जणयइ पडिकमा - न्यानाग सूत्रके पंचम स्थानके द्वितीय उद्देशमें आसबके पच द्वार लिखे है जैसेकि-मिथ्यात्व १, अविरति २, प्रमाद ३, कषाय ४, योग ५। और पंच सम्बर के द्वार हैं जैसेकि-सम्यक्त्व १, विरति २, अप्रमाद ३, अकषाय ४, और अयोग ५॥ इनको धारण करना और पहिले पाचोंको दूर करना इसका नाम भी प्रतिक्रमण है। तथा ठाणागजीके पचम स्थानमें पाच प्रकारसे प्रति. सपा और भी वर्णन किया है ॥ यथा-पचविहे पडिक पणे ५० तं० आसबदार पदिकमणे , मिच्छत पहिकमा २, कसाय पडिकमणे ३, जोग पडिक ४, माघ पदिकमणे ५, तथा पटम म्याने, बिहे पटिक्कमणे पं० त० र पटियमणे , पासवण परिचमणे ., इत्तरिते ३, आवक्वहिते ४, कि
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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