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( मोयगाण) कर्मों से मुक्त करते है फिर ( सव्वष्णुण ) सर्वज्ञ हैं ( सव्वदरिसिणं ) सर्वदर्शी है फिर ( सिवं ) कल्याणरूप ( अयलं ) अचल ( अरूयं ) रोगरहित ( अनंत ) अनंत ज्ञानादि करी ( अक्खय) अक्षय (अव्वावाह ) वाधा पीडादि रहित अर्थात् दुःखादि रहित ( अपुणरावित्ति ) जिसकी अपुनर्वृत्ति है अर्थात् पुर्नजन्म नही है ऐसी जो सिद्ध गति है (सिद्धगई ) अर्थात् मोक्ष है ( नामधेय ) नाम भी यही है जिसका सो ऐसे (ठाण) स्थानकको (संपत्ताण ) जो संप्राप्त हुए हैं अर्थात् जो मोक्षको प्राप्त हुए है ऐसे जो श्री अरिहंत प्रभु है तिनको ( नमो ) नमस्कार हो ( जिणाणं) जिन्होंने कर्मरूपी शत्रुओंको जीता है फिर ( जियभयाण ) जीत लिये है जिन्होने सर्व भय ||
भावार्थ --- यह स्तुति मंगल दो वार पढणा । द्वितीय वारमें यह पाठ कहना (ठाणं सपाविउ कामरस नमो जिणाण जियभयाणं) और इस स्तवमे जो आत्मा मोक्ष हो गये है वा होनेवाले है उनकी स्तुति है । फिर उनके गुणोंका गृहस्थी यथाशक्ति अनुकरण करे क्योंकि स्तुति करनेका सारांश यही होता है कि वे गुण स्वय भी ग्रहण किये जाये। जिस प्रकार रागद्वेपादि अतरग शत्रुओंको जीतके अर्हन् हुए हैं इसी प्रकार सर्व भव्य प्राणि - योंको भी होना योग्य हैं |
फिर तिक्खुत्तोके पाठ से गुरुदेवको वंदना नमस्कार करके सामायिक करनेकी आज्ञा लेकर निम्न लिखित सूत्र पठन करे ॥
आवस्तहो इच्छाकारेण संदिसह भगवन् देवसी पडिक्कमणो ठामि देवसी ज्ञान दर्शन चरित्ताचरितं तर अतिचार चिंतवणा अर्थ करेमि काउसगं ॥
हिंदी पदार्थ - (आस्सही) आवश्यमेवही (इच्छा) इच्छा है मेरी ( कारण ) करनेकी (संदिसह ) आज्ञा दीजिये ( भगवन् ) हे भगवन् मैं (देवसी ) दिन सम्बन्धि ( पडिक्कमणो ठामि ) प्रतिक्रमण प्रारंभ करता हू
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