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अर्थात् आवश्यक करनेकी आज्ञा लेकर आवश्यक करता हूं जैसेकि (देवसी) दिन सम्बन्धि (ज्ञान) ज्ञान (दर्शन) दर्शन (चरित्ताचरित्तं) चरित्रा चरित्र (देशव्रत) (तप) द्वादशभेदि तप ( अतिचार ) अतिचारोंके (चिंतवणा अर्थ) स्मरणके लिए ( करेमि ) करता हूं (काउसग्ग) कायोत्सर्ग। ____ भावार्थ-श्री अर्हन देवकी आज्ञासे प्रथम आवश्यक करनेकी आज्ञा लेकर उक्त सूत्रको पठन करके फिर ( नमस्कार मंत्र पढ़े ) ॥
णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्यसाहूणं ॥
६ महाशय ! इस महामन्त्रको नमोकार मन्त्र भी कहते हैं अर्थात् महामन्त्रका द्वितीय नाम नमोकार मन्त्र भी है, परन्तु कोई २ नमोकारके स्थानोपरि नवकार मन्त्र ऐसे भी उच्चारण करते हैं, सो यह भी सत्य है क्योंकि प्राकृत व्याकरणमें इसका विवेचन इस प्रकार है, यथा
रुदनमोर्व । प्रा० । व्या० । अ०। ८१ पा० । ४ । सू० । २२६ ॥ अनयोरन्त्यस्य यो भवति ।। अर्थात् रुद् और नम् धातु के अन्त वर्णको वकार हो जाता है जैसे रुबइ नबइ इत्यादि । इस सूत्रसे नवकार ऐसे सिद्ध हुआ ।
पुन: नमस्कार गन्दसे नमोकार पद इस प्रकारसे सिद्ध होता है जैसे कि-नमस्कार परस्परे द्वितीयस्य ॥ प्रा० व्या० अ० ८ पा० १ सू० ६२॥ अनयोर्द्वितीयस्य अत ओत्व भवति ॥ इस सूत्रसे नमस् शब्दके द्वितीय शटके अकारको अर्यात नमस् शब्दके मकारके अकारको ओकार हो गया जैसे कि, नमोस्कार, फिर क-ग-ट-ह-त-इ-व-श-प-स-५ क:-पामूत्र लुक् ॥ प्रा० स० ८ पा. २ सू० ७७ ॥ एषा संयुक्तवर्णसम्बन्धिनामूस्थिताना लुग् भवति ॥ इस सूत्रसे सकारका लोप हो गया तय नमोकार ऐसे रहा ॥ पुन. अनादी शेषादशयोतिम् ॥ प्रा० अ० ८ पा० २ सू० ८९ ॥ परस्यानादी वर्तमानस्य शेपत्यादेशस्य च द्विव भवति ॥ इस सूत्रसे ककार द्वित्त हो गया, तब परिपक प्रयोग नमोकार ऐसे सिद्ध हुआ ॥ अपितु "हस्वः संयोगे" प्रा० अ० ८ पा० १ मू० ८४ से "नमुकार" मी सिद्ध हो जाता है।