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________________ 113 हिंदी पदार्थ-(सचित्त) पृथ्वी आदि सचित्त वस्तुका प्रमाण (दव्व) द्रव्यांका प्रमाग जैसे अंगुली विना जो मुखमे डाला जाय वह सर्व द्रव्य हे यथा दुग्ध 1 खाड 2 इत्यादि (विगई) विगय प्रमाण जैसे दुग्ध 1 घृत 2 तेल 3 नवनीत 4 गुड 5 दधि 6 मधु 7 इत्यादि, (पण्ही) जुत्याकिा प्रमाग (तबोल) ताम्बुलादिका प्रमाण (वत्थं) वस्त्रोंका प्रमाण (कुसुमेसु) पुष्पोंका प्रमाण (वाहग) सवारी आदिका प्रमाण यथा घोडादि (सयण) शय्यादिका प्रमाण ( विलेवण) विलेपनका प्रमाण जैसे नेत्राअनादि (बभं) ब्रह्मचर्य का धारण करना अब्रह्मचर्यका त्याग करना (दिसी) दिशाओंका प्रमाग (न्हाण) स्नानका प्रमाण यथा एक वार द्विवार इत्यादि (भत्तेसु) सर्व वस्तुके वज़नका प्रमाण अर्थात् विना प्रमाण न ग्रहण करे / / भावार्थ-उक्त सूत्रमें यह वर्णन है कि गृहस्थी नित्यम् प्रति यथाशक्ति तृष्णाका निरोध करता हुआ विना प्रमाग कोई भी वस्तु ग्रहण न करे / प्रतिक्रमणका मुख्य आशय // प्रियवरो! आवश्यकका आशय यह है कि सर्व प्राणियोंसे मैत्रीभाव धारण करना और निज आत्माको सम्यक् ज्ञान सम्यक् दर्शन सम्यक् चरित्रमें आरूढ़ करना। पुनः निन स्वरूपको अनुप्रेक्षण करके तृष्णाको निरोध करना, आत्माको सदैव काल सदाचारमें लगाना और अपने पूर्वछत पापोका पश्चात्ताप करते रहना किन्तु नूतन पापोंसे अपनी आत्माको बवाना / फिर ऐसे प्रार्थना करना कि हे सर्वज्ञ देव मै आपके सत्योपदेशके प्रभावसे सर्व नीबोंका हितेपी बनता हूं निज आत्माको अपने स्वरूप में लाता हूँ। हे अजर! आपके कथन किए हुए सत्य पदार्थोंको यथावत् ज्ञात करके भव्य जीवोंको सन्मार्गमें स्थापन करू इत्यादि अनुप्रेक्षा करके सर्वे प्राणियों पर परोपकार करना यही आवश्यकका मुख्य आशय है / / ॐ शान्ति शान्ति शान्ति / /
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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