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________________ अथ चउबिहाहार उपवासका पाठ ॥ उग्गयसूरे अभ्भत्तठं पञ्चक्खामि चउम्विहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्यणा भोगेणं सहप्तागारेणं' सव्व समाहिवत्ति आगारेणं वोतिरामि ॥ ८॥ हिदी पदार्थ-(उग्णयसूरे) सूर्य उदयसे (अभ्भत्तठ) अभक्तार्थे अर्थात् अन्नपानीको ग्रहण न करनेके वास्ते (पउविहंपि आहारं) चार प्रकारके आहारका (पञ्चक्खामि) प्रत्याख्यान करता हूं जैसेकि-(असण) अन्नकी जाति (पाणं) पानीकी जाति (खाइम) खादिमकी जाति किन्तु (अन्नत्यणा भोगेण ) विना उपयोग आहार ग्रहण किया जाये ( सहसागारेण) अकस्मात् ग्रहण किया जाए (सव्व समाहिवत्ति आगारेण) सर्व प्रकारको समाधि होनेपर (वोसिरामि) चार प्रकारके आहारको त्यागता हू ।। भावार्थ-चतुर्विधके आहारके प्रत्याख्यानमें पूर्वोक्त आगार रक्खे जाते है इसको चउबिहार व्रत भी कहते है ॥ अथ तिविहादार उपवास करनेका पाठ ॥ उग्गयसूरे अभ्भत्तठं पञ्चक्खामि तिविहंपि आहारं असणं खाइमं साइमं अन्नत्यणा भोगेणं सहसागारेणं' सव्व समाहिवत्ति आगारेणं पाणादार पोरिसिं पञ्चक्खामि अन्नत्यणा भोगेणं सहसागारेणं पारिटायणियागारण, महत्तरागारेण. ૧૪
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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