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हारं असणं खाइमं साइमं अन्नत्थणा भोगेणं सह. सागारेणं* सव्व समाहिवत्ति आगारेणं पाणस्त ले. वेण वा अलेवेण वा अच्छेण वा बहुलेवेण वाससित्थेण वा असित्येण वा वोसिरामि ॥
हिंदी पदार्थ-(उग्गयसूरे) सूर्य उदयसे (आंबिलं) आंबिल ग्रहण करता हूं और (पञ्चक्खामि) प्रत्याख्यान करता हू (तिविहंपि) त्रिविधिके (आहारं) आहारका जैसेकि-( असणं) अन्नकी जातिका (खाइम) खादिमकी जातिका (साइम) स्वादिमकी नातिका (अन्नत्थणा भोगेणं ) अपितु विना उपयोग ग्रहण की जाए (सहसागारेणं) अकस्मात् वस्तु ग्रहण की जाए (सव्व समाहिवत्ति आगारेणं ) सर्व प्रकारकी समाधिके होनेपर (पाणस्स) पानीकी अपेक्षा इतने प्रकारके जलके भिन्न अन्य पानीका नियम जैसेकि-(लेवेण) लेपयुक्त पानी जैसे खजूरादिका (वा) अथवा (अलेवण) अलेप जल जैसे धोवनका पानी (वा) अथवा (अच्छेण) शुद्ध निर्मल उष्ण पानी (वा) अथवा (बहुलेवेण ) बहु लेप युक्त जैसे तण्डुलोंका [चावलों का धोवन (वा) अथवा (सत्तित्थेण) सीत्थयुक्त [कणसहित ] जैसे चूनका धोवन (असित्येण वा) सीथ रहित जल जैसे प्राशुक जल इनके विना अन्य प्रकारके जलोंको (बासिरामि) छोड़ता हू।।
भावार्थ-आबिल उसको कहते है जो विगयादिसे रहित केवल प्राशुक जलके साथ ही रोटिया ग्रहण की जावे उसका ही नाम आंबिल है, किन्तु आगार पूर्ववत् ही है। केवल पानी पदप्रकारसे वर्णन किया गया है जैसेकि-लेपयुक्त १ अलेपयुक्त २ शुद्ध उप्ण पानी ३ बहु लेपयुक्त ४ सीथयुक्त ५ असीययुक्त ६, इनके विना अन्य जलका परित्याग कर ॥
* लेगालेवेणं, गिहत्य संसटेणं, उक्खित्त विधेगेणे, परिठावणियागारेण, महत्तरागारणं ॥