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________________ HLEELSEASESSFHTTES - प्रकाशकीय निवेदन SHRESEFFEALTE श्रमण संस्कृति के समर्थ नायक भगवान महावीर ने संसार के कल्याण के लिए जो प्रवचन किया था, उसका अधिकांश विलुप्त हो जाने पर भी जो अंश आज उपलब्ध है वह बहुत विस्तृत है । भगवान् के प्रवचन का रहस्य समझने के लिए उस साहित्य को अविकल रूप से पढ़ा जाय, उसका चिन्तन-मनन किया जाय यह वांछनीय ही है । परन्तु आधुनिक मानव-जीवन की गति ऐसी दिशा की ओर अग्रसर हो रही है कि जीवन व्यस्त, प्रवृत्तिमय और झंझटों से परिपूर्ण बनता जाता है । इसके सिवाय जीवन अल्पकालीन होता जा रहा है और प्राचीन धर्मतत्व की ओर रुचि भी होती जाती है । इन कारणों से चिरकाल से यह आवश्यकता अनुभव की जा रही थी कि निर्ग्रन्थ भगवान् के प्रवचनों में से कुछ चुना हुआ अंश छांट कर संगृहीत किया जाय, जिससे संक्षेप में ही जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांत आ जावें । वैदिक ग्रन्थ के प्रतिपादक गीता के समान, ईसाई धर्म के बाइबिल के समान और मुस्लिम धर्म के कुरान के समान, सर्वसाधारण को संक्षेप में धर्म का स्वरूप समझाने वाले जैन धर्म के प्रतिपादक एक ग्रन्थ की कमी खटक रही थी। जैन दिवाकर प्रसिद्धवक्ता पण्डित रत्न मुनिश्री चौथमलजी महाराज का ध्यान इस कमी की ओर आकर्पित किया गया । तब महाराजश्री ने जैनागमों से चयन कर के 'निर्ग्रन्थ-प्रवचन' नाम से एक सुन्दर संग्रह तैयार कर दिया और उसके प्रकाशन का साँभाग्य इसी संस्था को प्राप्त हुआ। निर्ग्रन्थ-प्रवचन का प्रकाशन होते ही सर्वसाधारण का ध्यान उसकी ओर आकृष्ट हुआ। उसकी अनेक हिन्दी आवृत्तियां प्रकाशित हुई । देखते-देखते भारतवर्ष की अनक भाषाओं में उसका अनुवाद भी हो गया । गुजराती, मराठी, उर्दू, श्रादि के अतिरिक्त अंग्रेजी भापा में भी उसका प्रकाशन हुत्रा । संस्कृत भाषा में उस पर टीका लिखी गई। बहुसंख्यक जैन-अजैन विद्वानों ने, प्रोफेसरों ने, पत्र सम्पादकों ने उसकी खूब सराहना की। यह सब देख कर संस्था का उत्साह बढ़ा। जव निर्ग्रन्थ प्रवचन का इस प्रकार आशातीत स्वागत हुआ तो उससे प्रेरणा प्राप्त कर संस्था के संचालकों को उस पर हिन्दी भापा में एक भाष्य लिखवाने का विचार पाया. जिस से मूल प्राकृत गाथाओं का मर्म भलीभांति स्फुट रूप से पाठक समझ सकें।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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