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दो शब्द
घोर विनाशपथ की ओर जाने वाले संसार को अहिंसा, समभाव, सत्य और संयम का पाठ पढ़ाने के लिए निर्ग्रन्थों का प्रवचन ही सहायक हो सकता है । इन देवी आदर्शों का अनुसरण किये बिना संसार का त्राण नहीं है । सेना और शस्त्रों के संसार में विचरने वाले लोग भी, जान पड़ता है, कुछ दूसरी बातें सोचने लगे हैं । ऐसे समय में इस ग्रन्थ का प्रकाशन उपयोगी होगा। इस भावना से और साथ ही जैन दिवाकर प्रसिद्धवक्ता पण्डित मुनिश्री चौथमलजी महाराज तथा साहित्यप्रेमी साहित्यरत्न गणिवर्य पण्डित मुनिश्री प्यारचन्दजी महाराज के आदेश के पालन हेतु 'निम्रन्थ-प्रवचन' पर कुछ पंक्तियां लिखी गई हैं । आशा है यह प्रयास निर्ग्रन्थ-प्रवचन का मर्म समझने में उपयोगी होगी।
प्रस्तुत भाष्य के संपादक, संवर्द्धक एवं संशोधक श्रीगणिजी महाराज ने अगर परिश्रम न किया होता तो शायद यह इस रूप में पाठकों के समक्ष उपस्थित न हो पाता । अतएव इसमें जो अच्छाई हो उसका श्रेय श्रीगणिजी महाराज को प्राप्त है ।
प्रमाद, अज्ञान एवं असावधानी के कारण अगर कोई बात सिद्धान्त विरूद्ध आ गई होतो विद्वजन संशोधित कर सूचित करेंगे तो कृपा होगी। अगले संस्करण में उसका शोधन किया जा सकेगा। ग्रन्थ के मुद्रण में कुछ खटकने वाली भूलें रह गई हैं, उनका सुधार भी अगले संस्करण में किया जा सकेगा।
भाष्य-लेखन में अनेक ग्रंथकारों की सहायता ली गई है । उन सब के प्रति लेखक हृदय से कृतज्ञता प्रदर्शित करता है। श्री जैन गुरुकुल,
-शोभाचन्द्र भारिन, न्यायतीर्थ ब्यावर