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________________ ब्रह्मचर्य-निरूपण फिर भी श्रात्मा में अनन्त शक्ति है और इतनी शक्ति है कि यदि उसके प्रयत्न अनुकूल दिशा में किये जाएँ तो वह इन्द्रियों का दमन करके और मन की नकेल अपने हाथों में संभाल कर उनका स्वामी बन सकता है। जिन्होंने इस पथ का अनुसरण किया है, वे सब प्रकार के काम-विकार पर विजय प्राप्त कर सके हैं। वे पूर्ण ब्रह्मचारी बने हैं । उनके पवित्र चरणों में देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर देवता मस्तक झुकाते हैं। ऐसी ब्रह्मचारी पुरुष की महिमा है। ब्रह्मचर्य इतना महान् व्रत है कि उसके यशोगान का अन्त नहीं हो सकता। भगवान् ने सूयगडांगसूत्र में स्वयं कहा है-'तवेसुवा उत्तम चंभचेरं' अर्थात् ब्रह्मचर्य समस्त तपों में उत्तम है। ब्रह्मचर्य की महता से प्रेरित होकर प्रत्येक धर्म के अनुयायी और प्रत्येक देश के निवासी उसकी आवश्यकता का अनुभव करते हैं और मुक्त कंठ से उसकी प्रशंसा करते हैं । दक्षस्मृति में कहा है ब्रह्मचर्य सदा रक्षेदष्टया रक्षणं पृथक । स्मरणं कर्तिनं कलिः, प्रेक्षणं गुह्यभाषणम् ।। . संकल्पोऽध्यवसायश्च, क्रियानिवृत्तिरेव च। एतन्मधुनमष्टांग, प्रवदन्ति मनीषिणः ॥ अर्थात्-स्मरण, कीर्तन (प्रशंसा ), क्रीड़ा, देखना, गुप्त भाषण करना, संकल्प-कामभोग का इरादा करना, अध्यवसाय-कामभोग के लिए प्रयत्न करना और काय से ब्रह्मचर्य का भंग करना, यह पाठ प्रकार का मैथुन है। अतएव आठों प्रकार से सदैव ब्रह्मचर्य की रक्षा करनी चाहिए। ब्रह्मचर्य की महिमा प्रकट करते हुए शास्त्रकार ने कहा है: शीलं प्राणमृतां कुलोदयकरं, शीलं वपूभूषणम् । शीलं शौचकर विपद्भयहरं, दोर्गत्यदुःखापहम् ।। शीलं दुर्भगतादिकन्ददहन, चिन्तामणिः प्रार्थिते, व्याघ्रव्यालजलानलादिशमनं स्वर्गापवर्गप्रदम् ॥ अर्थात-शील मनुष्यों के कुल की उन्नति करने वाला है-शीलवान के कुल की वद्धि होती है। शील शरीर का श्रृंगार है अर्थात् शील-पालन से शरीर तेजस्वी श्रोजस्वी, प्रभापूर्ण और सुन्दर बनता है । शील से अन्तःकरण पवित्र बनता है। शील के प्रभाव से विपत्ति का भय दूर हो जाता है । शील दुर्गति के दुःखोंको दलन करने वाला है। वह दुर्भाग्य का समूल नाश करने वाला है । इष्ट सिद्धि के चिन्तामणि के सहश है अर्थात शीलवान् के समस्त मनोरथ सिद्ध होते हैं-उसे कहीं असफलता नहीं होती। शील के प्रभाव से व्याघ्र, सर्प, जल, अग्नि आदि की समस्त वाधाएँ दूर होती हैं और शील से अन्त में स्वर्ग तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रश्नव्याकरण सूत्र में भगवान ने ब्रह्मचर्य की महिमा इस प्रकार कही है
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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