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( श्रं )
मैं देख पाते हैं ।
हम पहले ही कह चुके हैं कि निर्ग्रन्थों का प्रवचन किसी भी प्रकार की सीमान से श्राबद्ध नहीं है । यही कारण है कि वह ऐसी व्यापक विधियों का विधान करता है जो श्राध्यात्मिक दृष्टि से अत्युत्तम तो हैं ही; साथ ही उन विधानों में से ऐहलौकिक सामाजिक सुव्यवस्था के लिए सर्वोत्तम व्यवहारोपयोगी नियम भी निक-लते हैं । संयम, त्याग, निष्परिग्रहता ( और श्रावकों के लिए परिग्रहपरिमाण ) श्रनेकान्तवाद और कर्मादानों की त्याज्यता प्रभृति ऐसी ही कुछ विधियां हैं, जिनके न अपनाने के कारण श्राज समाज में भीषण विशृंखला दृष्टिगोचर हो रही है । निर्ग्रन्थों ने जिस मूल आशय से इन बातों का विधान किया है उस श्राशय को सम्मुख रखकर यदि सामाजिक विधानों की रचना की जाए तो समाज फिर हरा-भरा, सम्पन्न, सन्तुष्ट और सुखमय बन सकता है । आध्यात्मिक दृष्टि से तो इन विधानों का महत्व है ही पर सामाजिक दृष्टि से भी इनका उसले कम महत्व नहीं है । संयम, उस मनो वृत्ति के निरोध करने का अद्वितीय उपाय है जिससे प्रेरित होकर समर्थ जन श्रामोद प्रमोद में समाज की सम्पत्ति को x स्वाहा करते हैं । त्याग एक प्रकार के बंटवारे का रुपान्तर है । परिग्रह परिमाण और भोगोपभोग परिमाण, एक प्रकार के आर्थिक साम्यवाद का आदर्श हमारे सामने पेश करते हैं; जिनके लिए श्राज संसार का बहुत सा भाग पागल हो रहा है । विभिन्न नामों के श्रावरण में छिपा हुआ यह सिद्धान्त ही एक प्रकार का साम्यवाद है । यहां पर इस विषय को कुछ अधिक लिखने का अवसर नहीं है-तथापि निर्ग्रन्थ-प्रवचन समाज को एक बड़े और आदर्श कुटुम्ब की कोटि में रखता है, यह स्पष्ट है । इसी प्रकार अनेकान्तवाद मतमतान्तरों की मारामारी से मुक्त होने का मार्ग निर्देश करता है और निर्ग्रन्थों की श्रहिंसा के विषय में कुछ कहना तो पिष्टपेषण ही है । श्रस्तु |
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निर्ग्रथ-प्रवचन की तासीर उन्नत बनाना है । नीच से नीच, पतित से पतित, और पापी से पापी भी यदि निर्ग्रन्थ-प्रवचन की शरण में आता है तो उसे भी वह अलौकिक झालोक दिखलाता है, उसे सन्मार्ग दिखलाता है और जैसे धाय माता गंदे बालक को नहला-धुलाकर साफ-सुथरा कर देती है उसी प्रकार यह मलीन से मलीन श्रात्मा के मैल को हटाकर उसे शुद्ध-विशुद्ध कर देता है । हिंसा की प्रतिमूर्त्ति भयंकर हत्यारे अर्जुन माली का उद्धार करने वाला कौन था ? अंजन जैसे चोरों को किसने तारा है ? लोक जिसकी परछाई से भी घृणा करते हैं ऐसे चाण्डाल जातीय हरिकेशी को परमादरणीय और पूज्य पद पर प्रतिष्ठित करने वाला कौन है ? प्रभव जैसे भयंकर चोर की आत्मा का निस्तार करके उसे भगवान् महावीर का उत्तराधिकारी चनाने का सामर्थ्य किसमें था ? इन सब प्रश्नों का उत्तर एक ही है और पाठक उसे समझ गए हैं । वास्तव में निर्मन्थ-प्रवचन पतितपावन है, शरण-शरण
× क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति समाज का एक एक अंग है अतः उसकी व्यक्तिगत कही जाने वाली सम्पति भी वस्तुतः समाज की सम्पत्ति है ।