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श्री जैनदिवाकरजी म० का संक्षिप्त परिचय
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विश्व-वाटिका में अनन्त पुष्प खिले हैं खिलते हैं और खिलते रहेगें । वे सब * अपनी मधुर मुस्कान के साथ, प्रकृति के अटल - अचल नियम के अनुसार क्षण हंस कर अपने गौरव पर इतरा कर, अन्त में अतीत के अनन्त असीम गर्भ में सदा के लिए विलीन हो जाते हैं । जिस सौन्दर्य-समन्वित सुमन - समूह से संसार में सौरभ नहीं भर जाता, जो निराश हृदयों में आशा एवं उत्साह का नशा नहीं चढ़ा देता, जो अपनी हृदयहारिता से दूसरों के हृदय का हार नहीं बन जाता, जिसमें अपने असाधारण सद्गुणों से जगत् को मुग्ध करने की क्षमता नहीं होती, जिसकी निर्मलता दुनियां के मैल को नहीं धो डालती, आह ! उस सुन्दर सुमन का भी कोई जीवन है ! उसका जीवन अकारथ है, उसका सौन्दर्य किसी काम का नहीं, उसके असाधारण सद्गुणों से संसारको कुछ भी लाभ नहीं । हां, जो पुष्प अपने सौन्दर्य को, सुरभि को एवं अपने आपको दूसरों के लिए न्योछावर कर देता है, उसी का जीवन सफल, सार्थक एवं कृतकृत्य हो जाता है, यों तो विश्व--वाटिका में अनन्त पुष्प खिलते हैं और खिलते रहेंगे 1
जो बात सुमन के संबंध में कही गई है, वही मानव के संबंध में भा कही जा सकती है । मनुष्य का जीवन- कुसुम विकसित हुआ, उसमें सुन्दरता का आविर्भाव हुआ - सुन्दर सद्गुणों का विकास हुआ, जगत् को पावन बना देने की क्षमता प्रकट हुई, पर यदि इन सब का उपयोग संसार के हित-सम्पादन में न किया गया तो सब व्यर्थ है ! सब का सब निकम्मा ! जो पुरुष - पुंगव अपने जीवन को संसार के सुधार के हेतु समर्पण कर देता है, उसीका जीवन सार्थक हो जाता हैं ।
यहां जिस नर-रत्न के जीवन की साधारण रूप- -रेखा अंकित करने का प्रयास किया जा रहा है, उनका ऐसा ही जीवन है । वह जीवन जगत् में नवजीवन लाने वाला है, प्राणियों में प्रेरणा का नूतन प्राण फूंकने वाला है, प्रभु महावीर के लोकोंत्तर सिद्धान्तों के क्रियात्मक रूप की प्रतिमूर्ति है ।
निर्ग्रन्थ-प्रवचन के मूल संग्राहक और अनुवादक प्रसिद्ध वक्ता, जैन दिवाकर, जगत्-वल्लभ पण्डित मुनि श्री चौथमलजी महाराज, का विस्तृत जीवन चरित ' आदर्श सुनि ' के नाम से प्रकाशित हो चुका है और वह श्री जैनादय पुस्तक प्रकाशक समिति रतलाम ( मालवा ) से प्राप्त किया जा सकता है । जिन्होंने अभीतक
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