________________
.सुशिष्य श्री गणीजी महाराज ने अगर भाष्य का संशोधन न किया होता; सम्पादन न किया होता तो भी हमारे लिए इसका प्रकाशन, इस रूप में करना संभव नहीं था । श्रीगणीजी महाराज के असीम अनुग्रह के फल स्वरूप ही हम यह बहुमूल्य भेंट पाठकों के कर-कमलों में अर्पित कर सके हैं।
शासन देव से प्रार्थना है कि सुयोग्य गुरु-शिष्य की यह जुगल-जोड़ी सूर्य- . चन्द्र की भाँति चिरकाल तक संसार के अज्ञानान्धकार को हटा कर सम्यग्ज्ञान का प्रकाश फैलाती रहे और भव्य जीवों का अनन्त उपकार करती रहे।
प्रुफ-संशोधन में, प्रमादवश अनेक त्रुटियां रह गई हैं, आशा है पाठक उन्हें सुधार कर पढ़ेंगे। अगले संस्करण में हम विशेष सतर्कता रखने का प्रयास करेंगे।
भवदीयकालूराम कोठारी
छगनलाल दुगड़ प्रेसिडेन्ट
मंत्रीश्री जैनोदय पुस्तक प्रकाशक समिति, रतलाम ( मालवा )