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वितीय परिबेद. (४१) सीधजोन व्योम परोयत् किमावरीवः कुहकस्य शर्मण्यतः किमासीजहनं गनीरं" श्रा श्रुति ऋग्वेदनी, तथा “आत्मा वा श्दमग्र आसीनान्यत् किंचिन्मिषत् सईदत लोकानुसृज इति" श्रा ऐतरेय ब्राह्मणनी श्रुति बे; इत्यादि अनेक श्रुतियोथी सिक थाय के सृष्टिनी पेहेलां एक ईश्वर हता. न जगत् हतुं अथवा नहोतुं जगत् कारण,एकज ईश्वर शुखरूप हता. वली इसाइ तेमज मुसलमान मतवाला पण एमजमाने जे.एहेतुथी श्रमे प्रथम पद मानियें बीयें.
उत्तर- हे पूर्वपदिापर्नु ए केहे ईश्वरने बहुज कलंकित करे. पूर्वपद- जगत् रचवाथी ईश्वरने शुं कलंक प्राप्त थाय ने ?
उत्तरपद-प्रथम तो जगत्नु उपादान कारण नथी, ते हेतुश्री जगत् कदापि उत्पन्न यश् शकतुं नथी. जेनुं उपादान कारण होय नहि ते कार्य कदापि उत्पन्न थर शके नही. जेम के गधेडानां सींग.
पूर्वपद-ईश्वरें पोतानी, शक्ति, नामांतर कुदरतथी जगत् रचेल .ई. श्वरनी जे शक्ति ने तेज उपादान कारण डे.
उत्तरपद-ईश्वरनी जे शक्ति ले ते ईश्वरथी जिन्न , के अजिन्न ने ? जो कहो के जिन्न , तो पड़ी जड डे के चेतन डे ? जो कहो के जड , तो ते नित्य , के अनित्य ? जो कहो के नित्य ने तो श्रापनुं एम जे केहे हतुं के सृष्टिनी पेहेला एक केवल ईश्वर हता अने बीजी काश्पण वस्तु न होती; ते प्रमाणरहित अन्यायी वचन थयु, पोतेज पोताना वचनने मृषा कराव्यु. वली एम कहो के अनित्य ले तो पड़ी तेनी उपादानकारणरूप बीजी ईश्वरनी शक्ति यश, ते शक्तिनी उत्पन्न करनारी त्रीजी शक्ति थर एवीरीतें करतां अनवस्था दूषण श्रावे .जो कहो के चेतन दे, तो पड़ी नित्य डे के अनित्य ? बंने पक्षमा उपर बताव्या मुजब पूर्वापर स्ववचन व्याहत तेमज अनवस्था दूषण . जो कहो के ईश्वरशक्ति ईश्वरथी अभिन्न डे तो सर्ववस्तुने, ईश्वरज केहेवी जोश्ये, जो सर्ववस्तु ईश्वर बनी गई तो पड़ी सारं के बुरुं, नरकके खर्ग, पुण्य के पाप, धर्म के अधर्म, उंचनीच, रंकराजा,सुशील के उःशील, राजा तेमज प्रजा, चोर तेमज साधु, सुखी तेमज फुःखी इत्यादि सव, ईश्वर पोतेज बन्या. हवे विचारो के ईश्वरें जगत् अ॒ रच्यु ? पोतेज .