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जैनतत्त्वादर्श. पोतानुं सत्तानाश करी लीधुं. श्रा प्रथम कलंक ईश्वरने लागे , तथा ज्यारें ईश्वर पोतेज सर्वरूप बनी गया तो पड़ी वेदादि शास्त्र शा माटे बनाव्यां ? तेमज तेनो अभ्यास करवाथी शुं फल थयुं ? या बीजुं कलंक तथा ज्यारे वेदादि शास्त्र बनाव्यां त्यारे पोते पोताने ज्ञानी बनाववाने रच्यां ते उपरथी सिझ थयु के प्रथम तो पोते अज्ञानी हता. या त्रीजें कलंक; तथा शुद्ध हता ते अशुद्ध बन्या कारण के जगरूप बनवानी . मेहेनत करी जे निष्फल थई. था चोथु कलंक; को वस्तु जगत्मां सारी के बुरी नहि, आ पांचमुं कलंक; शा माटे पोते पोताने संकटमा ना‘ख्या. या बहुं कलंक; इत्यादि अनेक कलंक आप ईश्वरने लगावो गे.
पूर्वपद-ईश्वर सर्वशक्तिमान् बे, ते हेतुश्री ईश्वर, उपादान कारण विनापण जगत् रची शकेले.
उत्तरपक्ष-श्रा जे आपनु केहे जे ते प्यारी स्त्री अथवा मित्र मानशे परंतु प्रेक्षावान् कोईपण नहि माने; कारण के आ तमारा केहेवामां कोईपण प्रमाण नथी. जेर्नु उपादान कारण होय नहि ते कार्य कदी थईशके नहि. जेम के गधेडानां सींग, एबुं प्रमाण आपना केहेवाने बाधक डे परंतु साधक तो कोई नथी, तेम बतां हठ करी खकपोलकल्पितनेज मानशो तो प्रेक्षावाननी पंक्तिमां कदापि दाखल नहि थई शको. तेमज था तमारा कथनमां इतरेतर आश्रय दूषणरूप वजनो प्रहार पडे . जेम के सृष्टिनी पेहेलां उपादानादि सामग्रीरहित केवल शु. क, एक ईश्वर सिझ थाय तो सर्वशक्तिमान् सिझ थाय, जो सर्वशक्तिमान् सिक थाय तो सृष्टिनी पेहेला उपादानादि सामग्रीरहित केवल शुभ, एक ईश्वर सिक थाय; या बंनेमांथी ज्यां सुधी एक सिद्ध न थाय त्यांसुधी बीजं कदीपण सिकन थाय. तेमज था तमारा कथनमा चक्रक दूषण आवे , सृष्टिकर्त्ता सिद्ध थाय तो सर्वशक्तिमान् सिङ थाय. ज्यारे सर्व शक्तिमान् सिझ थाय त्यारे सृष्टिनी पेहेलां सामग्रीरहित • केवल शुरु एक ईश्वर सिक थाय, ज्यारे एम थाय त्यारे सृष्टिकर्ता सिद्ध थाय, एम प्रगट चक्रक दूषण आवे .
पूर्वपद-ईश्वर तो प्रत्यक्ष प्रमाणथी सिक बे, पड़ी श्राप तेने सृष्टिकख़ केम नथी मानता ?