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________________ (५१६) जैनतत्त्वादर्श दानादि शुं शुं अनुष्ठान में कर्यां जे ? जेथी हुँ देवता थयो, ज्ञानथी जोता पोताना शिष्य आसुरीने ग्रंथार्थज्ञानशुन्य दीठो. विचार कर्यों के मारो शिष्य कंश पण जाणतो नथी, तेने कांशक तत्त्वनो उपदेश करूं तो वीक. एवो विचार करी कपिल देवता आकाशमां पंचवर्णना मंडलमां रही, पोताना शिष्यने तत्त्वज्ञाननो उपदेश करवा लाग्या. यथा-श्रव्यक्तथी. व्यक्त प्रगट थाय ; ते अवसरे षष्ठितंत्रशास्त्र श्रासुरीए रच्यु. तेमां एवं कथन कर्यु के प्रकृतिमाथी महान् थाय ,अने महान्थी अहंकार थाय ने, अहंकारथी गण षोडश थाय ने, गणषोडशथी, पंचतन्मात्रा थाय बे, अने पंचतन्मात्राथी पंच महाभूत थाय , इत्यादि स्वरूप था ग्रंथमां पूर्वे सांख्यमां लखी आव्या बीये. तेऊना संप्रदायमां नामीसंख नामा आचार्य थया, त्यारथी ते मतनुं नाम सांख्यमत प्रसिद्ध अयु. वास्तविक रीते सर्व परिबाजक संन्यासीउँना लिंग आचारादि धर्मनुं मूल मरीचि थयो, ते सांख्यमतना तत्वो हाल पण जगवद्गीता तथा जागवतादि ग्रंथोमां अने सांरख्यमतना शास्त्रोमा प्रचलित . एक जैनमतविना बीजा सर्व मतो, मूल आ मतथीज समजबुं जोश्ए. ___ ज्यारे श्रीरीषनदेवजीने केवल ज्ञान उत्पन्न थयुं. त्यारे जरतने पण तेज रोज आयुद्धशालामां चक्ररत्न उत्पन्न थयु. जेथी जरते जरत क्षेत्रना बए खंडोमां पोतानुं राज्य स्थापी आज्ञा मनावी, तेज कारणथी तेनुं नाम नरतखंड प्रसिद्ध थयु.. __ ज्यारे जरते पोताना नाना नाने आज्ञा मनाववा वास्ते दूत मोकट्या, त्यारे तेजेए विचार कयों के राज्य तो अमने पिताश्री आपी गया . तो पनी जरतनी आज्ञा अमारे शा वास्ते मानवी जोश्ये ! चालो पिताश्री पासे जश् सर्व वृत्तांत कहीयें. जो पिताजी कहेके तमे जरतनी श्राझा मानो तो पढी अमे बरतनी श्राज्ञा मानीशु, अने पिताजी कहेके तमे जरतनी साथे लडो, तो पड़ी श्रमे जरतनीसाथे लडद्यु, एवो विचार करी अहाणु नाज़ कैलास पर्वत उपर श्रीरीषजदेव जगवान पासे गया. जगवान तेऊना अंतःकरणना अनिप्राय जाणी तेजेने उपदेश करता हवा. श्री नगवाने जे उपदेश कयों ते श्रीसूत्रकृतांग सूत्रना बीजा वैतासीय अध्ययनमा लखेलले, ते उपदेश श्रवण करी जगवानना श्र
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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