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दकादश परिवेद. (५१७) घाणु पुत्रोए दीक्षा लश लीधी. सर्व तकरार तजी दीधी. तेम बनवाथी जरतनी अपकीर्ति यश तेथी जरत चक्रवर्ती पांचसो गाडां पक्कानना लावी समवसरणमां ाव्या, अने कदेवा लाग्या के हुं मारा जानने जोजन करावीश, अने मारो अपराध क्षमा करावीश. श्री रीषनदेव नगवाने कडं के, एवो आहार साधुने कल्पे नहीं. ते सांजली जरत मनमा बहुज उदास थया. तेमणे पनी पुब्यु के नगवन् था थाहार कोने खवरावं ? त्यारे इंजे कडं के तमाराथी जेठ गुणोमां अधिक होय तेउँने श्रा जोजन आपो.जरते विचार कर्यों के माराथी गुणाधिक तो श्रावक , तेथी तेने नोजन करावं,एवो निश्चय करी सर्वे गुणवान श्रावकोने नोजन कराव्यु.वली ते श्रावकोने जरतजीए कह्यु के तमे सर्वे प्रतिदिन मारुं जोजन कर्या करो ? तमारे खेती वाणिज्यादि कांश पण काम करवू नहिं. निःकेवल खाध्याय करवामां तत्पर रहो.लोजन करी मारा मेहेलोना दरवाजा पासे बेसी आप्रमाणे कहो “जीतो जवान् वईते जयं तस्मान्माहन माहनेति" ते श्रावको पण तेमज करता हवा. जरत राजा तो जोगविलासमां मन रहेता हता, परंतु ज्यारे श्रावकोना शब्दो सांजलवामां श्रावता हता त्यारे मनमां विचारता हता के हुँ कोनाथी जीतायो ९ ? विचार करतां निश्चय थयो के क्रोध, मान, माया अने लोज, आ चारे कषायोए मने जीतेल . अने तेनाथीज जयनी वृद्धि, एवा निश्चयात्मक विचारथी जरतजीने नारे वैराग्य उत्पन्न थतो हतो. अनुक्रमे रसोइ जमनारा श्रावको बहु वधी गया, तेश्री रसोइ करनाराजेए आवीने जरत महाराजने विनंति करी के श्र समुदायमां श्रावक कोण , अने कोण नथी ? ते श्रमे जाणी शकता नथी. नरतजीए तेजने कडं के तमे पुबीने तेउने नोजन करावो. रसोश्वार्जए जमनाराउने पुबतां, जे श्रावकना पांच अणुव्रत त्रण गुणव्रत श्रने चार शिक्षाव्रत धारण करनारा हता, ते ने श्रावक मानी जरत महाराज पासे तेने लाववामां श्रावता हता. नरत महाराज तेजेना शरीर उपर कांकणी रत्नथीत्रण त्रण रेखाना चिन्ह करता, अने दर उ महीने तेउनी परीक्षा करवामां श्रावती हती. ते सर्व श्रावक ब्राह्मणना नामथी प्रसिक थया; कारणके ज्यारे चरत महाराजना दरवाजा पासे ते माहन माहन शब्द वारंवार उच्चार करता हता,