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जैनतत्त्वादर्श, सूक्ष्म जीवोना शरीरने बाह्य शस्त्रना घा लागता नथी; परंतु अहींा तो सूक्ष्मशब्द, स्थावर जीवो जे पृथ्वी, पाणी, अग्नि, पवन, वनस्पतिरूप पांच बादर स्थावर, ते सूक्ष्म वाचक बे, अने स्थूल जीव ते छींजिय, तीजिय, चतुरिंजिय पंचेंजिय जाणवा. था बंने नेदमां सर्वजीव श्रावी गया. ते सर्व जीवोनी त्रिकरण शुद्धियी साधु रक्षा करे , ते कारणथी साधुने वीश विश्वा ( वसा) दया बे. श्रावकथी तो पांच स्थावरनी द. या पलती नथी, सचित्त आहारादि करवाथी अवश्य हिंसा थाय , ते कारणथी दश विश्वा दया दूर थश्. बाकी दश विश्वा रही. सारांश के त्रसजीवनी दया रही. त्रसजीवनी हिंसाना पण बे नेद . एक संकपथी हणवा, बीजा आरंजथी हणवा. तेमा संकल्पथी हणवानो त्याग बे, परंतु श्रारंजनी हिंसानो श्रावकने त्याग नथी, श्रारंज हिंसामा यला राखवानी , कारण के आरंज हिंसा श्रावकने थाय , ते कारणथी दश विश्वामाथी पांच विश्वा बाद थक्ष, अर्थात् संकल्पथी त्रसजीवनी हिंसानो त्याग . वली तेना पण बे नेद . एक सापराधी, बीजा निरपराधी. तेमां निरपराधी जीवोने न हणवा, अने सापराधी जीवोने दणवानी जयणा हे. कारण के सापराधी जीवनी दया श्रावकथी सदा सर्वथा पलती नथी. जेम के घरमां चोर आवी चोरी करी धन, माल लइ जता होय, तेउने मार्या, कुट्या विना ते धन, माल बोडता न होय, तथा पोतानी स्त्रीनी साथे को अन्यपुरुष पुराचार सेवतो देखवामां श्रावे, तेवे प्रसंगे मारवो पडे, तथा कोश् श्रावक राजा होय, अथवा तो राजाना हुकमथी युद्ध करवा जq पडे, तेवे प्रसंगे श्रावक, प्रथम शस्त्र चलावे नहि, परंतु ज्यारे शत्रु शस्त्र चलावी मारवा आवे ते समये शत्रुने मारवा पडे. तथा सिंहादि जानवर खावा श्रावे, ते वखते तेउने मारवां पडे. त्यारे संकल्पथी पण हिंसानो त्याग नथी. ते कारणथी पांच विश्वामांथी श्ररधी बाद थक्ष, बाकी अढी विश्वा दया रही. अर्थात् मात्र निरपराधी त्रसजीव दृष्टिगोचर आवे ते ने न मारं. एवो नियम रह्यो. तेनापण बे नेद , एक सापेक्ष, बीजो निरपेद. तेमां पण सापेक्ष निरपराधी त्रसजीवनी दया श्रावकथी पलती नथी, कारण के श्रावक ज्यारे घोडा गाडी, बलद गाडी, घोडा, घोडी प्रमुखनी