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अष्टम परिजेद. (३शए) ३ खदारा मंत्रनेद अतिचार. पोतानी स्त्रीए कां बानी वात कहेली होय, ते वात पति · लोकोमा प्रकट करे. उपलक्षणथी जाइ प्रमुखनी कहेली वात प्रगट करवी. तात्पर्य ए डे के मर्मवाली वात प्रगटयवाथी स्त्री श्रादि कुवामां पड़ी डुबी मरे .
४ मृषा उपदेश अतिचार. बीजाउँने असत्य कामो करवानो उपदेश । आपवो. वली विषयसेववानां चोराशी आसन शिखववां, तथा बीजा जेथी फुःखमां श्रावी पडे तेवो उपदेश करवो. वली वीर्यपुष्टिनां औषधादि बताववां, जेथी विषय, कषाय अत्यंत वृद्धि पामे, अने जेथी बहुज विषयसेवन करवामां थावे तेवो उपदेश करवो ते. ___५ कूट लेखकरण अतिचार. जूग दस्तावेज बनाववा, जूठी सही करवी, जूठी महोर बाप करवी, अदरो चुसी नाखी, नवा अदरो दाखल करवा, इत्यादि बीजाने नुकशान थाय तथा पुःख थाय एवा हेतुथी कूटलेख करवा ते आ पांच आतिचार, तथा पूर्वोक्त पांचप्रकारनां श्रसत्य नरकादि गतिनां कारण जाणी, श्रावक अवश्य वर्जे, शति मृषावादविरमणबत. ____३ त्रीजा स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत, खरूप लखिये बियें. मोटी चोरी करवी, जेमके धाड चोरी करवी, रस्तानी बुट करवी. गणेशीर्ष मारी जीत फोडी खातर पाडवू, जबरदस्तिश्री बीजानी वस्तु लेवी, बल कपटथी उगीने बीजानी वस्तु लेवी, विश्वासघात करी बीजानी वस्तु - लवी जवी, अपराधसहित मिलकतनो खोटो उपयोग करवो, मिलकतनी अदलाबदली करवी, इत्यादि अदत्तादान अर्थात् चोरीनुं स्वरूप जे. चोरी करवाथी परलोकमां नरकादि माठी गति प्राप्त थाय , अने था लोकमां पण प्रगट थवाथी राज्यदंड, अपयश, तथा अप्रतीति थाय . ते कारणथी श्रावक अदत्तादाननो त्याग करे. अदत्तादान व्रतना बेदबे, ते कहिये डिये.
अव्य श्रदत्तादान विरमण व्रत. पूर्वोक्त प्रकारें बीजानी पडेली के विसरेली वस्तु लेवी नहि ते अव्य श्रदत्तादान विरमणव्रत .
२ नाव श्रदत्तादान विरमणव्रत. पर जे पुजल अव्य, तेनी रचना, वर्ण, गंध, रस, स्पर्शादिरूप, त्रेवीश विषय, तथा श्रापकर्मनी वर्गणा,
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