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सप्तम परिछेद. (३१३) पूर्वाचार्यनी अपेक्षाज रहेशे नहि, वली जेना मनमा जे अर्थ सारो लागशे ते अर्थ बनावी लेशे. जेम वर्तमानमां को पाखंडी मस्कराए झग आदि वेदो उपर स्वकपोल कल्पित टीका बनावेली , ते अमे वांची पण जे तेए वेदमंत्रादि उपर जे भाष्य बनाव्यु बे, ते मंत्रोना अर्थमां एवं लखेलुं डे के "अग्निबोट" अर्थात् वरालयंत्रथी चालनारां वहाण, तथा रेलगाडी चालवानो विधि, तथा पृथ्वी गोल , ते सूर्यनी चारे बाजुए फरे , अने सूर्य स्थिर , इत्यादि अंग्रेजोए पोतानी बुद्धिना बलथी जे नवीन शोधनी विद्या बहार पाडी जे, ते सर्व विद्यानुं वेदोमां कथन . पोताना शिष्योने वेदतुं महत्त्व बताववा वास्ते खकपोलकल्पित अर्थ बनावी लीधा बे; अने पूर्व महीधरादि पंडितोए वेदो उपर जे दीपिका तथा नाष्यो रचेला तेउनी निंदा तेमज मूर्खता प्रगट करेली बे. जेमके ते मूर्ख हता, तेउँने वेदना अर्थ आवडता न होता. प्रश्नः-पूर्वना श्रर्थ बोडीने नवीन अर्थनी रचना करवातुं शुं कारण ?
उत्तरः-प्रथम तो वेदो उपरनां प्राचीन नाण्य, तेमज दीपिका मानवाथी वेदोनी सत्यता, ईश्वरोक्तता तेमज प्राचीनता सिद्ध थती न होती. ते कारणथी ईशावास्य उपनिषद् वर्जीने, सर्व उपनिषदो, सर्व ब्राह्मण नाग, सर्व स्मृति, पुराणादि शास्त्र, जाष्य, दीपिकादि मानवां तजी दीधा, तेमणे एवो विचार कयों के पूर्वोक्त सर्व ग्रंथो मानवाथी अमारो मत बीजा मतवाला खंडित करी देशे, कारण के पूर्वोक्त सर्व ग्रंथो युक्ति प्रमाणथी विकल बे, वली प्राचीनोए जे अर्थ करेला , तेमां केटलाएक अर्थ एवा बे के जे श्रवण करवाथी श्रोताजनोने लगा उत्पन्न थाय बे, कारण के महीधरकृत दीपिका जे वेदनी टीका डे, तेमां मंत्रादिना जे अर्थ लखेला , तेमां लख्युं ले के यज्ञपत्नी घोडार्नु लिंग पकडीने पोतानी योनिमां प्रक्षेप करे, इत्यादि अर्थ . तेनुं वर्णन श्रागल उपर लखीश. ते अर्थाने बोडवावास्ते, अने वेदो खंगन न थाय ते वास्ते खकपोल कल्पित जाष्य बनावी अंग्रेजादि पाश्चिमात्यनी रीतिमुजंब तथा इंजिल मतानुसार अर्थ बनाव्या बे, परंतु वेदादिवेत्ता बुद्धिमान् पुरुषो तो को ते मानता नथी, अने जेठ माने ते कांश