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जैनतत्त्वादर्श.
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सूरि कुमारपाल राजाने बहार लाव्या. राजायें पुब्धुं के महाराज ! तमासो बहुज आश्चर्यकारी बे. सूरिजीए कयुं के हे राजन् ! इंद्रजालनी विद्या जेर्जने आवडती होय, ते एम करी शके बे. इंद्रजाल विद्यानां सत्तावीश पीठ बे, तेमांथी सत्तर पीठ शंसारमा प्रचलित बे, परंतु सत्तावीशे पीठ हुं जाएं बुं, हाल बीजो कोइपण जारतवर्षमां जातो नथी, अने जे गुरुर्जए श्रमने ते विद्या श्रपी हती, तेमणें एवी श्राज्ञा पण करेली से के, जविष्यमां या विद्या तमारे कोइने पण देवी नहि कारण के विद्याथी मोटो अनर्थ उत्पन्न यशे, सारांश के श्रा कालमां जीव तुछ बुद्धिवाला होवाथी तेने या विद्या जरशे नहि, वली तेज कारणथी अमारा श्राचार्योंए योनिप्रानृत शास्त्र विछेद करी दीघेलां बे, ते योनि प्रानृतने अनुसारें था इंद्रजाल रची शकाय डे. श्रा योनिप्रानृतनुं कथन व्यवहार जाष्यचूर्णीमां करेलुं बे, ज्यां लख्युं ने के या योनिप्रानृतमां तंत्रविद्या बे, जेनाथी सर्प, घोडा, हाथी विगेरे जीवतां जानवर, वस्तुना मेलापथी बनी शके बे, तथा सुवर्ण, मणि, रत्न प्रमुखपण बनी शके बे. या मशालामांज एवी मिलनशक्ति बे के मरजीमां आवे ते बनावी व्यो ? ते कारणथी वर्त्तमानमां नवीन वस्तुने देखीने कोइए जैनधर्मथी चलायमान न थवं जोइए. तत्त्वार्थना महाजा
मां सामंत श्राचार्य पण लखे वे के इंद्रजालीया तीर्थंकरनी समान बाह्यरुद्ध सर्व बनावी शके बे, ते कारणथी कोइ बाबतमां चमत्कार देखी जिनवचनमां शंका न करवी.
वली केटलाएक जैनमतवालाउने श्रा पण आश्चर्य बे के, ज्यारे आर्यावर्त्तमां बे प्रहर दिन होय बे, त्यारे अमेरिकामां अर्धरात्रि होय बे,
ज्यारे अमेरिकामां बे प्रहर दिवस थाय बे, त्यारे आर्यावर्त्तमां श्र रात्रि थाय बे, ते बाबतना चोकस समाचार तारनी मददथी तेमज घडीयाला साधनथी मेलवी शकाय बे. या वातनो यथार्थ उत्तर हुं
पी शकुं तेम नथी. मारी श्रद्धा एवी पण नथी के पूर्व श्रचायनी शाहादत शिवाय समाधान करूं, कारण के मात्र मारी कंल्पनाथी कां जैनमत सत्य थइ शकतो नथी, जैनमत तो पोताना स्वरूपथीज सत्य बनशे, जो मारी कल्पनाज जैनमतनी सत्यतानुं कारण होय तो, कोइ