________________
(३२४)
जैनतत्त्वादर्श. वेदादि जाणता नथी, कारण के ज्यारे पूर्वना ऋषि मुनि, पंडित असत्यवादी तेमज तेऊना बनावेला अर्थ असत्य बे, त्यारे वर्तमानना बनावेलाउँना अर्थ केवीरीतें सत्य करी शकशे ? जे मूलमांज असत्य ने ते नवीन रचनाथी कदापि सत्य थवाना नथी. ते कारणथी पोतानी बुछिनो विचार सत्य मानवो, अने वेदोने माननारा प्राचीन संप्रदाय वालाना अर्थ जूहा मानवा, तेनाथी अधिक अविवेक तथा अन्याय शिरोमणि पणुं बीजु कयुं ? वली ज्यारे प्राचीनोना बनावेला अर्थ जूग करशे, त्यारे तेऊना बनावेला वेदो पण जूगर उरशे, ते कारणथी जेर्ड मतधारी , तेर्जए कां तो पोताना प्राचीनोना कथन करेला अर्थ मानवा जोश्ए, अथवा तो ते मतने तेमज तेमतनां शास्त्रने तजी देवां जोए, अने तेज कारणथी मारी एवी श्रझा के जैनमतमा जे प्रामाणिक तेमज पंचांगी कारक आचार्य लखी गया में तेजेने अनुसारज मारे कथन करवु जोश्ए, खकपोलकल्पित कदापि नहि. जे स्वकपोल कल्पित करशे तेमज मानशे, ते कदापि जैनमतवालो बनी शकशे नहि, अने तेनी कल्पना पण सर्वथा सत्य उरशे नहि, कारण के पूर्वाचार्य ज्यारे जूग , त्यारे नवीन कल्पनावाला केवीरीतें साचा उरशे ? ते सर्व कारणथी पूर्वना प्रश्ननो उत्तर पंचांगी प्रमाणथी हुँ श्रापी शकतो नथी, कारण के १ शास्त्रो बहुज विछेद गया बे, तथा श्ार्यरक्षितसूरिना समयमांचारेअनुयोग तोडीने पृथक् पृथक् अनुयोग रचवामां आव्या ने, तथा ३ स्कंधिल आचार्यना समयमां बार वर्ष सुधी अकाल पड्यो हतो ते वखतमां शास्त्रो बहुज विस्मृत थवा लाग्यां, जेथी सर्व साधुए दक्षिण मथुरामां समाज करी, जे प्रसंगे जे जे आचार्य तथा साधुऊने जे जे शास्त्रनां जे जे स्थल,स्मृतिमा रह्यां इतां ते ते स्थल एकत्र करी लखवामां आव्यां,बादध देवर्किगणि दमा श्रमण प्रवृति आचार्योए पानाउपर एक क्रोड ग्रंथो लख्या, बाकीना तजी दीधा, ५ प्रजावकचारित्रमा लख्यु डे के, सर्व शास्त्रो उपर टीका लखी हती, जे सर्व विछेद गश्, तथा ६ ब्राह्मणो अने बौछोए तो ग्रंथोनो बहुज नाश कर्यो, तथा ७ मुसलमानो ए पोताना समयमां सर्वमतनां शास्त्रोमाटीमां मेलवी दीधां, अंनेक सलगावी दीधां, शेष रह्यां ते जंडारोमां गुप्त रहेवाथी गलीगयां, अने व