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सप्तम परिछेद.
(शए) तना नामनी माला फेरवे, तेथी जेम ते स्त्रीन सुहाग रहेतुं नथी, तथा पतिनुं नाम लेवाथी जेम संतानोत्पत्ति थती नथी, तथा कामेडा तृप्त थती नथी, तेवीज रीतें जो कहेवामां आवशे तो तो जगवाननुं नाम लेवाश्री पण कां सिद्धि थशे नहि. आ दृष्टांतश्री तो नगवाननुं नाम पण न ले जोए ?
प्रश्नः-प्रतिमा तो कारीगर बनावे ,ते कारीगरने पण पूजवा जोश्ये ?
उत्तरः वेदादि शास्त्र विखारी (लहीया) लखे , तेने पण पूजवा जोश्ए. तेमज साधुनां मात पिताने साधुश्री अधिक पूजवां जोश्ए. प्रश्नः-श्रा कालमां कोश्पण बुद्धिमान् स्थापना मानता नथी. उत्तरः-बुद्धिमान् तो सर्व माने , परंतु मूर्ख मानता नथी. प्रश्नः-कया बुद्धिमान् स्थापना माने ले ? बतावो तेनां नाम ?
उत्तरः-प्रथम तो सांसारिक विद्यावाला सर्व बुद्धिमान् , नूगोल, खगोल, हिप, अर्थात् युरोपखंड आदिमां इग्लंड प्रमुखनां चित्र सर्व, स्थापनारूप माने बे, तेमज बनावे बे; तथा ककार आदि जे अदरो ने ते सर्व पुरुषना (ईश्वरना) शब्दनी स्थापना करे बे. वली जैनिउँना मतमा एकसो आठ मणका, मालामा राखवामां आवे , परंतु न्यूनाधिक राखवामां आवता नथी तेनो हेतु ए डे के जैन, बारगुण अरिहंत पदना माने , श्राग्गुण सिक पदना माने जे, बत्रीश गुण आचार्यपना माने , पचीश गुण उपाध्याय पदना माने , अने सत्तावीश गुण साधु पदना माने , सर्व मली एकसो आठ गुण थाय बे; ते वास्ते जैनीना मतमा मालामां जे मणका बे, ते एकेक मणका एकेक गुणनी स्थापना , तेथी आ माला पण स्थापना बे; तेवीज रीतें बीजा मतोमां पण माला, तसबीर बे, ते सर्व कोश्ने को वस्तुनी स्थापना , नहि तो एकसो आठ अथवा एकसो एकनो नियम नहि जोश्ए. वली पादरी लोकोपण पोताना बापेला पुस्तकोमा सामसीह (जीससक्राइस्ट) नी मूर्ति तेज वखतनी उपावे बे, के जे वखते मसीहने शूली उपर देवाने लइ जता हता. ते मूर्त्तिने देखवाथी सामसीहनी सर्व अवस्था ख्यालमां ावी जाय . बस ! स्थापनानुं प्रयोजन तो एज के ते देखवाथी असल वस्तुनुं स्वरूप याद आवी जाय . श्राश्चर्य तो एज डे
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