________________
( २०६ )
जैन तत्त्वादर्श
र्वक जक्ति करवाथी तेनी शांतमुद्रा सेवकजनने परमशांतरस प्रमुख अ नेक लाभ उत्पन्न करावे बे.
प्रश्नः - जेम पञ्चरनी गायथी दूधनी गरज सरती नथी, तेम प्रतिमाथी पण कांइ गरज सरती नथी, तो हवे प्रतिमाने शावास्ते मानवी जोइयें ? उत्तर:- जेम कोइ पुरुष सुखधी गाय, गाय, एम सत्यरूपें उच्चार करतां बतां पण तेनुं उदर दूधथी जरातुं नथी, तेम परमेश्वरनुं नाम लेवाथी, तेमज तेनो जाप करवाथी पण कांइ लाज तो नथी. ते कारणथी पर - मेश्वरनुं नाम पण न बेवुं जोइयें ?
प्रश्नः -- परमेश्वरनुं नाम लेवाथी तो श्रमारुं अंतःकरण शुद्ध थाय बे. उत्तरः- तेव जरीतें परमेश्वरनी प्रतिमा देखवाथी पण परमेश्वरना स्वरूपनो बोध थाय बे. तेथी अंतःकरणानी शुद्धि अहिंश्रा पण सरखीज बे. प्रश्नः - परमेश्वरनुं नाम लेवाथी पुण्य बे तो पढी प्रतिमा शावास्ते पूजवी ? उत्तर:- जेवी स्थापना (प्रतिमा) देखवाथी श्रात्मानी शुद्ध परिणति याय बे, तेवी नामथी यती नथी. कारण के जेम कोइ सुंदर यौवनवंती स्त्रीनुं नाम लेवाथी राग तो उत्पन्न याय बे, परंतु जो ते सुंदर यौवनवती स्त्रीनी मूर्त्ति प्रगट सर्वाकारवाली सन्मुख देखीए तो अधिक तर विषयराग उत्पन्न थाय बे, तेटलाज कारणसर श्री दशवैकालिक सूमां लखेलुं बे के “ चित्तनित्ती न निकए नारी वासुलंकियं " अर्थात् स्त्रीना चित्रामणवाली जींत देखवाथी पण विकार उत्पन्न थाय बे. श्रा वात तो प्रगट ( प्रसिद्ध ) बे के रागीनी मूर्ति देखवाथी राग उत्पन्न थाय बे, तथा कोकशास्त्रोक्त स्त्री, पुरुषनां विषय सेवनना चोराशी वासन देखवाथी तत्काल विकार उत्पन्न थाय बे, तेवीज रीतें निर्विकार स्थापना रूप शांतमुद्रा, श्री वीतराग परमात्मानी देखवाथी जेवो निर्विकार शांतिनाव उत्पन्न थाय बे, तेवो नाम लेवाथी यतो नथी.
प्रश्नः - जेम कोइ स्त्रीना जर्त्तारिनुं नाम देवदत्त बे, ते देवदत्त मरीगयो, बाद ते स्त्रीए पोताना पति देवदत्तनी मूर्ति बनावी; ते मूर्त्तिषी जेम ते स्त्रीनुं सुहाग, संतानोत्पत्ति तथा कामश्छा पूर्ण थतां नथी, तेवीज रीतें जगवाननी मूर्त्तिथी पण कांइ लाज थतो नथी.
उत्तरः- देवदत्तनी स्त्री देवदत्तना मरण पढी श्रासन बिछावीने देवद