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( ए) जैनतत्त्वादर्श. के वर्तमानमा केटलाएक तुबबुद्धिवाला पोताना बनावेला पुस्तकमां यज्ञशाला तथा यज्ञोपकरणनी स्थापना पोताना हाथथी करीने पोताना शिष्योने जणावे जे के यज्ञोपकरण आ आकृतिनां जोइए, उतां फरी कहे जे के अमे स्थापनाने मानता नथी. हवे विचार करवो जोइए के ते उना करतां अधिक मंदमति कोश् जगत्मां ? पोते स्थापना करे , बतांपि फरी कहे जे के अमे स्थापनाने मानता नथी. ते कारणथी जे पुरुष पोताना शास्त्रना कर्त्ताने देहधारी मानशे, ते अवश्य तेनी मूर्त्तिने पण मानशे, अने जेठ पोताना शास्त्रना उपदेष्टाने देहरहित माने बे, ते अल्पबुद्धिमंत होवाथी प्रमाण अननि बे, कारण के जेने देह नथी, ते शास्त्रना उपदेष्टा कदापि होश् शकता नथी, कारण के देह रहित होवू, अने शास्त्रना उपदेश देवावाला थवू, ए वातमां को पण प्रमाण नथी. वली निराकार, सर्वव्यापी परमेश्वरखें ध्यानपण कोश करी शकतुं नथी, दृष्टांत, जेम आकाशनुं ध्यान. ते कारणश्री अढार दूषणोथी रहित जे परमेश्वर दे, तेनी मूर्ति अवश्य मानवी तथा पूजवी जोश्ए, एवा देव तो अहंतज , ते कारणथी अर्हतनी प्रतिमा मानवी जोइए, परंतु कोश् पुर्बुद्धिमान्ना कुहेतुथी तजवी न जोशए, इति स्थापना.
हवे त्रीजा अव्यनिक्षेप, खरूप एवं डे के, जे जीवें तीर्थंकर नाम कर्मनो निकाचित बंध करेलो , ते जीवमां जावि गुणोनो आरोप, श्रर्थात् नविष्यमा तीर्थंकर नगवान् श्रा प्रमाणे थशे, एवो वर्तमानमां तेनामां आरोप करीने वंदन, पूजन करवायी अनेक नव्यजीवोए मोद प्राप्त करेल .
चोथो चावनिक्षेप. वर्तमानकालमां सीमंधर प्रमुख तीर्थंकर केवलज्ञानसंयुक्त, समवसरणमा बिराजमान, नव्यजीवोना प्रतिबोधक, चतुर्विधसंघना स्थापक, एवा नाव अर्हत, जेना चरणकमलनी सेवा करीने अनेक जीव मोक्ष प्राप्त करे, आ नाव निदेप बे. आ चारे निदे संयुक्त, एवा जे अरिहंत, देवाधिदेव, महागोप, महामाहण, महानिर्यामक, महासार्थवाह, महावैद्य, महापरोपकारी, करुणासमुख, इत्यादि अनेक उपमा लायक, नव्यजीवोनो अझान अंधकार दूर करवाने सूर्य समान, जेमनां वचन प्रमाणथी श्रविरोधि, एवा मुनिमनमोहन, योगी