________________
( ४)
जैनतत्त्वादर्श. ध्यान नावश्नुतना आलंबनथी थाय , सूक्ष्म अंतर्जस्प जावगत अवलंबनमात्र चिंतवनथी थाय .
हवे शुक्लध्यानजनित समरसीनावनुं स्वरूप कहिये बियें. बीजा शुक्लध्यानमा वर्त्तता ध्यानी समरसीनाव धारण करे . समरसीनाव एटले तदेकशरणता. कारण के आत्माने अपृथक्त्वरूपें परमात्मामां लीन करीए त्यारेज समरसीनाव धारण थाय बे. समरसीनाव केम करे? श्रात्माना अनुजवथी करे,
हवे वीणमोहगुणस्थानकने अंते शुं करे ? ते कहिये बियें. पूर्वोक्त ध्यानथी तेमज बीजा शुक्लध्यानना योगथी कर्मधनोनुं दहन करीने योगीमुनि अंतना प्रथमसमये अर्थात् बारमा गुणस्थानकना बीजा चरमसमयमां निशा अने प्रचला आ बे प्रकृतिनो क्षय करे .
हवे अंतसमये जे करे ते कहिये बियें. वीणमोह गुणस्थानके अंतसमयमा १ चकुदर्शन, २ अचकुदर्शन, ३ अवधिदर्शन, ४ केवलदर्शन, था चार दर्शनावरणीय, तथा पांचप्रकारनां ज्ञानावरणीय, अने पांचप्रकारना अंतराय, ए चौद प्रकृतिनो दय करीने वीणमोहांश थश्ने केवल, स्वरूप थाय . तथा वीणमोहगुणस्थानस्थ जीव, दर्शनचतुष्क, झानांतरायदशक, उच्चगोत्र, यशनाम, ए सोल प्रकृतिनो बंधव्यवछेद थवाथी एक शातावेदनीयनो बंध करे . तथा १ संज्वलनलोज, २ - षजनाराच संहनन, बे प्रकृतिनो उदयव्यवछेद थवाथी सत्तावन प्रकृति वेदे . तथा संज्वलन लोजनी सत्ता दूर थवाथी एकसो एक प्रकृतिनी सत्ता . ___ हवे क्षीणमोहांत प्रकृतियोनी संख्या कहियें बीये. चोथा गुणस्थानकथी क्षय थती थती त्रेसठ प्रकृति दीणमोहमा संपूर्ण थाय बे. एक प्रकृति चोथा गुणस्थानकमां, एक पांचमामां, श्राप सातमामां, बत्रीश नवमामां, सत्तर बारमामां, एम सर्व मली त्रेसठ थश्. बाकीनी पंचाशी प्रकृति जीर्ण वस्त्रनी जेवी तेरमा सयोगी केवली गुणस्थानकमां रहे , - हवे सयोगीकेवलीने जे नाव तथा सम्यक्त्व, अने चारित्र थाय डे ते कहियेंबियें. ते केवली जगवंत आत्माने आ गुणस्थानकमा दायिक शुभनाव प्रगट थाय बे, परम उत्कृष्ट दायिक सम्यक्त्व थाय बे, अने