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चतुर्थ परिछेद.
( १३१ ) टना प्राग्जावनो श्राव बे. जो प्राग्रनाव विना पण ते मृत्पिंथी घट o जाय तो तो सूत्रपिंडादिथी पण घट केम न थाय ? जेवो मृत्पिडमां घट प्रजावनो श्राव बें, तेवोज सूत्रपिंकादिमां पण घट प्राग्भावनो नाव बे. तथा ते मृत्पिंथी खरशृंग केम यह जतां नथी ? ते कारणश्री पूर्वोक्त तमारुं केहेतुं कांइ नहि एवं बे तथा तमे जे कां हतुं के जे वस्तु जे अवसरे जेनाथी थाय बे. तेज वस्तु कालांतरें पण तेज - वसरें तेनाथी नियतिरूपथी घती देखाय बे. या जे तमारू केहेतुं वे ते वास्तविक . कारण के कारण सामग्रीना छानादि नियमोथी कार्य पण तेज अवसरें तेनाथ नियतरूपेंज थाय बे. ज्यारे कारणशक्तिना नियमी कार्य थ गयुं, त्यारे प्रमाणपंथनो कुशल कोण एवो प्रेक्षावान् Maharaत नियतिनो अंगीकार करे इति नियतिखंडनं ॥ sa पांचमा स्वनाववादिनुं खंडन लखियें बियें स्वजाववादी एम कड़े बेके, संसारमां सर्व जाव पदार्थ खजावथीज उत्पन्न याय बे. या स्वनाववादिर्जनो मत नियतिवादना खंगनथीज खंमन थइ गयो. कारण के जे दूषणो नियतिवादिना मतमां कहेलां वे ते सर्व दूषणो प्रायः मतमां पण समानज बे. जेम के या जे तमारो स्वभाव बे ते नाव - रूप बे के अनावरूप बे ? जो कहो के जावरूप बे तो एकरूप बे के अनेकरूप बे ? इत्यादि सर्व दूषण नियतिनी जेम केदेवां.
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एक बीजी पण वात बे के स्वभाव आत्माना जावने कहे बे. ते खजाव कार्यगतहेतुबे के कारणगत हेतु बे ? कार्यगत तो नथी, कारण के ज्यारे कार्य थइ जशे, त्यारे कार्यगत वजाव यशे, परंतु कार्य थयाविना कार्यगत स्वजाव केम थाय ने जो कार्य यर गयुं तो तेनो हेतु स्वजाव केम था ? जे जेनो लब्ध लाज संपादन करवामां समर्थ होय ते तेनो तु, कार्य तो निष्पन्न थवाथी आत्मलाभ प्राप्त थयो बे; नहि तो ते स्वनावनेज नावनो प्रसंग थइ जशे, त्यारे तो ते स्वभाव का - नो हेतु केवीरीतें शे ? जो कहो के कारणगत हेतु बे तो ते तो - मने पण संमत . ते स्वभाव प्रतिकारण जिन्न बे, तेथीज माटीथी घट थाय बे, परंतु पट यतुं नथी, माटीना पिंगमां पटादि थवानो स्वनाव नथी. तेवीज रीतें तंतुथी पटज थाय बे, घटादि यता नथी,