________________
चतुर्थ परिछेद.
(१२ए) विना यस्मा, न तुल्यानां विशिष्टतेति वचनप्रामाण्यात् ” ते कारणथी अवश्य ते नियतिथी अन्य नानारूप विशेषण नियतिना नेद मानवा जोश्यें. ते अनेकरूप विशेषणोनुं होवु ते गुंते नियतिथीज थाय ने के को बीजाथी थाय बे ? जो कहो के नियतिथीज थाय ने तो ते नियति खतः एकरूप होवाथी ते नियतिथी उत्पन्न थयेला विशेषणोनी अनेक रूपता केवी रीतें थाय?
जो विचित्र कार्यनी अन्यथा अनुपपत्तिथी नियति पण विचित्ररूपज मानशो, तो नियतिनी विचित्रता बहु विशेषणो विना नहि थाय, ते कारणथी ते नियति विषे विशेष्य अनेक अंगीकार करवा जोश्ये. हवे ते विशेषणोना जे जाव के ते, ते नियतिथीज थाय ने के को बीजाथी? इत्यादि, तेज फरी आव्यु. ते कारणथी अनवस्था दूषण लागेजे.
हवे जो एम कहो के बीजाथी थाय , तो ते पद पण अयुक्त . कारण के नियति विना बीजा कोश्ने तमे हेतु मानेला नथी, तेथी आ तमारु केहे कोई कामर्नु नथी. वली एम मानशो के नियति अनेक रूप , तो तमारा मतना बे वेरी विकल्प अमे. तमारी सन्मुख खडा करिये लियें. जो तमारी नियति अनेकरूपडे तो मूर्त ने के अमूर्त ने ? जो कहो के मूर्त ले तो नामांतरथी कर्मनोज अंगीकार कस्खो. कारण के कर्म पुजलरूप होवाथी मूर्तपण जे अने अनेकरूप पण डे. तो तो तमारो अने अमारो एक मत थ गयो, कारण के अमे जेने कर्म मानियें लियें, तेज कर्मने नामांतरथी तमे नियति मानी लीधी; परंतु वस्तु एकज . जो नियतिने अमूर्त मानशो तो ते अमूर्त होवाथी सुखपुःखनो हेतु थशे नहि. जेम के आकाश अमूर्त डे परंतु सुखाःखनो हेतु नथी. पुजलज मूर्त होवाथी सुखदुःखनो हेतु थर शकेले. जो तमे एम केहेशो के आकाशपण देशदथी सुखःखनो हेतु थाय डे. जेम के मारवाड देशमा आकाश फुःखदायक बे, अने बीजा जलवाला देशोमां सुखदायक जे. श्रा पण तमारं केदेवू असत् .ते मारवाड श्रादि देशोमां पण आकाशमा रहेला जे पुजलो डे ते पुजलथीज सुख उःख थाय जे. जेम के मरुस्थल प्रायः जलथी रहित , अने रेती घणीज बे, तेथी रस्ते चालतां पग रेतीथी घसाय बे, जेथी परसेवो बहुज