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श्री जैन सिद्धान्त पोल संग्रह, छठा भाग १५ हुआ। वह पूर्ववत् स्वस्थ हो गई और सुखपूर्वक अपने गर्भ का पालन करने लगी। गर्भ समय पूर्ण होने पर एक परम तेजस्वी बालक का जन्म हुआ। गर्भ के समय माता को चन्द्र पीने कादोहला उत्पन्न हुआ था इसलिये उसका नाम चन्द्रगुप्त रखा गया। जब चन्द्रगुप्त युवक हुआ तब चाणक्य की सहायता से पाटलिपुत्र का राजा बना।
चन्द्र पीने के दोहले को पूरा करने की चाणक्य की पारिणामिकी बुद्धि थी।
(आवश्यक मलयगिरि टीका) (१३) स्थूलभद्र--पाटलिपुत्र में नन्द नाम का राजा राज्य करता था। इसके मन्त्री का नाम सकडाल था । उसके स्थूलभद्र
और सिरीयक नाम के दो पुत्र थे। यक्षा, यक्षदत्ता, भूता, भूतदत्ता, सेणा, वेणा और रेणा नाम की सात पुत्रियाँ थीं । उनकी स्मरण शक्ति बहुत तेज थी । यक्षा की स्मरण शक्ति इतनी तेज थी कि जिस बात को वह एक बार सुन लेती वह ज्यों की त्यों उसे याद हो जाती थी। इसी प्रकार यक्षदत्ता को दो बार, भूता को तीन वार, भूतदना को चार चार, सेणा को पाँच बार, वेणा को
छः बार और रेणा को सात बार सुनने से याद हो जाती थी। __ पाटलिपुत्र में वररुचि नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह बहुत विद्वान् था। प्रतिदिन वह एक सौ आठ नये श्लोक बनाकर राजसभा में लाता और राजा नन्द की स्तुति करता। श्लोकों को सुनकर राजा मन्त्री की तरफ देखता किन्तु मन्त्री इस विपय में कुछ न कहकर चुपचाप बैठा रहता। मन्त्री को मौन बैठा देखकर राजा वररुचि को कुछ भी इनाम न देता। इस प्रकार घररुच को रोजाना खाली हाथ घर लौटना पड़ता । वररुचि की स्त्री उससे कहती कि तुम कमाकर कुछ भी नहीं लाते, घर का खर्च