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श्री - सेठियांजन ग्रन्थमालां
किस तरह चलेगा? इस प्रकार स्त्री के बार बार कहने से वाररुचि तंग आ गया । उसने सोचा- 'जब तक सकडाल मन्त्री राजा से कुछ न कहेगा, राजा मुझे इनाम नहीं देगा ।' यह सोचकर वह सकडाल के घर गया और सकडाल की स्त्री की बहुत प्रशंसा करने लगा | उसने पूछा -- पण्डितराज ! आज आपके आने का क्या प्रयोजन है ? वररुचि ने उसके आगे सारी बात कह दी । उसने कहा- ठीक है, आज इस विषय में मैं उनसे कह दूंगी । वररुचि वहाँ से चला आया ।
शाम को सकडाल की स्त्री ने उससे कहा--- स्वामिन्! वररुचि रोजाना एक सौ आठ श्लोक नये बना कर लाता है और राजा की स्तुति करता है । क्या वे श्लोक आपको पसन्द नहीं आते ? सकडाल ने कहा -- श्लोक पसन्द आते हैं ।
उसकी स्त्री ने कहा- तो फिर आप उसकी प्रशंसा क्यों नहीं करते ? मन्त्री ने कहा- वह मिथ्यात्वी है । इसलिये मैं उसकी प्रशंसा नहीं करता | स्त्री ने कहा स्वामिन् ! आपका कहना ठीक है किन्तु आपके कहने मात्र से ही किसी गरीब का भला हो जाय तो इसमें आपका क्या बिगड़ता है । सकडाल ने कहाअच्छा, कल देखा जायगा ।
दूसरे दिन राजसभा में आकर रोजाना की तरह वररुचि ने एक सौ आठ श्लोकों द्वारा राजा की स्तुति की। राजा न मन्त्री की तरफ देखा । मन्त्री ने कहा - सुभाषित है । राजा ने वररुचि को एक सौ आठ मोहरें इनाम में दे दीं। वररुचि हर्षित होता हुआ अपने घर चला आया । उसके चले जाने पर सकडाल ने राजा से कहा- आपने वररुचि को मोहरें इनाम क्यों दीं १ राजा ने कहावह नित्य नये एक सौ आठ श्लोक बना कर लाता है और श्राज तुमने उसकी प्रशंसा की, इस लिये मैंने उसे इनाम दिया । सकडाल