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. श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला राजकुमार की उदारता को देखकर उसे राज्य प्राप्त होने की बात को सोच लेना मन्त्रीपुः की पारिणामिकी बुद्धि थी।
• (आवश्यक मलयगिरि टीका) (१२) चाणक्य-चाणक्य की बुद्धि के बहुत से उदाहरण हैं उनमें से यहाँ पर एक उदाहरण दिया जाता है।
एक समय पाटलिपुत्र के राजा नन्दने चाणक्य नाम के ब्राह्मण को अपने नगर से निकल जाने की आज्ञा दी। वहाँ से निकल कर चाणक्य ने संन्यासी का वेष बना लिया और घूमता हुआ वह मोर्यग्राम में पहुंचा। वहां एक गर्भवती क्षत्रियाणी को चन्द्र पीने का दोहला उत्पन्न हुआ । उसका पति बहुत असमञ्जस में पड़ा कि इस दोहले को कैसे पूरा किया जाय । दोहला पूर्ण न होने से वह स्त्री प्रतिदिन दुर्वल होने लगी। संन्यासी के वेश में गांव में घूमते हुए चाणक्य को उस राजपूत ने इस विषय में पूछा । उसने कहा-मैं इस दोहले को अच्छी तरह पूर्ण करवा दूंगा । चाणक्य ने गांव के बाहर एक मण्डप धनवाया।उसके ऊपर कपड़ा तान दिया गया। चाणक्य ने कपड़े में चन्द्रमा के आकार का एक गोल छिद्र करवा दिया। पूर्णिमा को रात के समय उस छेद के नीचे एक थाली में पेय द्रव्य रख दिया और उस दिन क्षत्रियाणी को भी वहाँ बुला लिया। जव चन्द्रमा बराबर उस छेद के ऊपर आया और उसका प्रतिबिम्ब उस थाली में पड़ने लगा तो चाणक्य ने उससे कहा-लो, यह चन्द्र है, इसे पी जाओ। हर्पित होती हुई क्षत्रियाणी ने उसे पी लिया। ज्यों ही वह पी चुकी त्यों ही चाणक्य ने उस छेद के ऊपर दूसरा कपड़ा डालकर उसे बंद करवा दिया । चन्द्रमा का प्रकाश पड़ना बन्द हो गया तो क्षत्रियाणी ने समझा कि मैं सचमुच चन्द्रमा को पी गई हूँ। अपने दोहलेको पूर्ण हुआ जानकर क्षत्रियाणी को बहुत' हर्ष