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... श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला है। दंशाश्रुतस्कन्ध की टीका में नाभि प्रमाण लिखा है किन्तु आचारांग सूत्र में जंघा प्रमाण बताया गया है।
(१०) एक महीने में तीन माया स्थान का सेवन करना शबल दोप है। यह अपवाद सूत्र है । माया का सेवन सर्वथा निपिद्ध हैं। यदि कोई भिक्षु भूल से मायास्थानों का सेवन कर बैठे तो भी अधिक बार सेवन करना शवल दोप है।
(११) राजपिण्ड को ग्रहण करना शवल दोर है। (१२) जान करके प्राणियों की हिंसा करना शबल दोप है।. (१३) जान कर झूठ बोलना शबल दोप है। (१४) जान कर चोरी करना शवल दोष है।
(५) जान कर सचित्त पृथ्वी पर बैठना, सोना, कायोत्सर्ग अथवा स्वाध्याय आदि करना शक्ल दोष है।
(१६) इसी प्रकार स्निग्ध और सचित्त रज वाली पृथ्वी, सचित्त शिला या पत्थर अथवा घुणों वाली लकड़ी पर बैठना, सोना, कायोत्सर्ग आदि क्रियाएं करना शरल दोप है।
(१७) जीवों वाले स्थान पर, प्राण, वीज, हरियाली, कीड़ी नगरा, लीजन फूलन, पानी, कीचड़, मकड़ी के जाले वाले तथा इसी प्रकार के दूसरे स्थान पर बैठना, सोना, कायोत्सर्ग आदि क्रियाएं करना शवल दोप है।
(१८) जान करके मूल, कन्द, छाल, प्रवाल,पुष्प, फूल, वीज, या हरितकाय आदि का भोजन करना शवल दोप है।
(१६) एक वर्ष में दल बार उदकलेप करना शवल दोष है। - (२० एक वर्ष में दस मायास्थानों का सेवन करनाशवल दोप है।
(२१) जान कर सचित्त जल वाले हाथ से अशन, पान, सादिम और स्वादिम वो ब्रहण करके भोगने से शवल दोष होता है। हाय, कड़छी या माहार देने के वर्तन आदि में सचित्त