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श्री जैन सिद्धान्त बाल संग्रह, छठ भाग
वाला शबल होता है।
(४)आधाकर्म का सेवन करना शबल दोप है । साधु के निमित्त से बनाए गए भोजन को आधाक्रर्म कहते हैं उसे ग्रहण तथा सेवन करने वाला शबल होता है।
(५) सागारिक पिण्ड (शय्यातर पिण्ड) का सेवन करना शवल दोप है। साधु को ठहरने के लिए स्थान देने वाला सागारिक या शय्यातर कहलाता है । साधु को उसके घर से आहार लेना नहीं कल्पता । जो साधु शय्यातर के घर से आहार लेता है वह शवल होता है।
(६) औद्देशिक (सभी याचकों के लिए बनाये गये) क्रीत (साधु के निमित्त से खरीदे हुए) तथा अाहृत्य दीयमान (साधु के स्थान पर लाकर दिये हुए) आहार या अन्य वस्तुओं का सेवन करना शबल दोप है । उपलक्षण से यहां पर प्रामित्य साधु के लिए उधार लिए हुए) प्राच्छिन (दुर्चल से छीन कर लिये हुए) तथा अनिसृष्ट (दूसरे हिस्सेदार की अनुमति के बिना दिये हुए)
आहार या अन्य वस्तुओं का लेना भी शक्ल दोप है । साधु को ऊपर लिखी वस्तुएं न लेनी चाहिए | दशाश्रुतस्कन्ध की दूसरी दशा में इमजगह क्रीत, प्रामित्य, प्राच्छिन्न, अनिसृष्टतथा याहत्य दीयमान, इन पॉच बातों का पाठ है। समवायांग के मूल पाठ में पहले बताई गई तीन हैं । शेष टीका में दी गई हैं।
(७ बार वार अशन आदि का प्रत्याख्यान करके उन को भोगना जवल दोप है।
( छ: महीनों के अन्दर एक गण को छोड़ कर दूसरे गण में जाना शवल दोप है।
(, एक महीने में तीन बार उदक लेप करना शक्ल दोष है। . प्रमाण जल में प्रवेश करना उदकलेप कहा जाता