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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (१८) करीरपाणग-केरों का धोया हुआ पानी । (१९) कोलपाणग-बेरों का धोया हुआ पानी। (२०) अमलपाणग-आंवलों का धोया हुआ पानी। (२१) चिंचापाणग-इमली का पानी। उपरोक्त प्रकार का पानी तथा इसी प्रकार का और भी अचित पानी साधु को लेना कल्पता है ।
उपरोक्त पानी के अन्दर कोई सचित्त गुठली, छिलका, वीज आदि पड़े हुए हों और गृहस्थ उसे साधु के निमित्त चलनी या कपड़े से छान कर दे तो साधु को ऐसा पानी लेना नहीं कल्पता । (श्राचाराग दूसरा श्रुतस्कन्ध अध्ययन १ उद्देशा ७,८) (पिण्ड नियुक्ति) गा. १८-२१
६.१३ शबल दोष इक्कीस जिन कार्यों से चारित्र की निर्मलता नष्ट हो जाती है, उसमें मैल लगता है उन्हें शबल दोष कहते हैं। ऐसे कार्यों को सेवन करने वाले साधु भी शवल कहलाते हैं। उत्तर गुणों में अतिक्रमादि चारों दोपों का एवं मूल गुणों में अनाचार के सिवा तीन दोषों का सेवन करने से चारित्र शवल होता है। उनके इक्कीस भेद हैं
(१) हस्त कर्म करना शबल दोप है । वेद का प्रबल उदय होने पर हस्त मर्दन से वीर्य का नाश करना हस्तकर्म कहा जाता है। इसे स्वयं करने वाला और दूसरों से कराने वाला शबल कहा जाता है।
(२) मैथुन सेवन करना शवल दोष है।
(३) रात्रि भोजन अतिक्रम आदि से सेवन करना शबल दोष है । भोजन के विषय में शास्त्रकारों ने चार भंग बताएहैं
(१) दिन को ग्रहण किया हुआ.तथा दिन को खाया गया (२) दिन को ग्रहण करके रात को खाया गया (३) रात्रि को ग्रहण करके दिन को खाया गया (४) रात्रि को ग्रहण करके रात्रि को खाया गया। इनमें से पहले भंग को छोड़ कर बाकी का सेवन करने