________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग
२१५
चिल्कुल खण्डन नहीं होता। वादी को चक्कर में डालने के लिए यह शब्द जाल बिछाया जाता है, जिसका काटना कठिन नहीं है । इसलिए इनका प्रयोग न करना चाहिए। यदि कोई प्रतिवादी इनका प्रयोग करे तो वादी को बतला देना चाहिए कि प्रतिवादी मेरे पक्ष का खंडन नहीं कर पाया। इससे प्रतिवादी की पराजय हो जायगी। लेकिन यह पराजय इसलिए नहीं होगी कि उसने जाति का प्रयोग किया, बल्कि इसलिए होगी कि वह अपने पक्ष का मण्डन या परपक्ष का खण्डन नहीं कर सका। (न्यायदर्शन वात्स्यायनभाष्य) (प्रमाणमीमासा २ अ० १ श्रा० २६ सूत्र तथा अध्याय ५ आहिक १)
(न्यायप्रदीप, चौथा अध्याय) पचीसवाँ बोल संग्रह ६३७--उपाध्याय के पचीस गुण जो शिष्यों को सूत्र अर्थ सिखाते हैं वे उपाध्याय कहलाते हैं। वारसंगो जिणक्खाओ सम्भाओ कहिउ' चुहे । तं उचइसंति जम्हाओ-बझाया तेण पुच्चंति ॥
अर्थ-जो सर्वज्ञभापित और परम्परा से गणधरादि द्वारा उपदिष्ट वारह अङ्ग शिष्य को पढ़ाते हैं वे उपाध्याय कहलाते हैं। उपाध्याय पञ्चीस गुणों केधारक होते हैं। ग्यारह अङ्ग, वारह उपाङ्ग, चरणसप्तति और करणसप्तति-ये पच्चीस गुण हैं।
ग्यारह अङ्ग और बारह उपाङ्ग के नाम ये हैं-(१) आचारांग (२) मूयगडांग (३) ठाणांग (४) समवायांग (५) विवाहपन्नत्ति (व्याख्याप्रज्ञप्ति या भगवती) (६) नायाधम्मकहाओ (ज्ञाता धर्म कथा) (७) उवामगदसा (८) अंतगडदसा (8) अणुत्तरोववाई (१०) पएहावागरण (प्रश्नव्याकरण) (११) विवागसुय (विपाक