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श्री जैन सिद्धन्तिं बोल सँग्रह, छठा भाग १७५ ६१६-पाँच इन्द्रियों के तेईस विषय . __श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुइन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, स्पर्शनेन्द्रिय, इनके क्रमशः शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श विषय हैं । शब्द के तीन, रूप-के पाँच, गन्ध के दो, रस के पांच और स्पर्श के आठ भेद होते हैं ये कुल मिलाकर तेईस हैं । नाम ये है।।
(१-३) श्रोत्रेन्द्रिय के तीन विषय-जीच शब्द, अजीव शब्द और मिश्रशब्द । (४-८)चक्षुइन्द्रिय के पांच विषय-- काला, नीला हाल, पीला और सफेद :। (९-१०) प्राणेन्द्रिय के दो विपर्यसुगन्ध और दुर्गन्ध । (११-१५) रसनाइन्द्रिय के पांच विपयतीखा, कड़वा, कला, खट्टा और मीठा । (१६-२३) स्पर्शनेन्द्रिय के पाठ विषय-कर्कश,मृदु, लघु, गुरु, स्निग्ध, रूक्ष, शीत और उष्ण। ; पाँच इन्द्रियों के २४० विकार होते हैं। वे इस प्रकार हैं
"श्रोनेन्द्रिय के बारह-जीव शब्द, अजीर शब्द, मिश्र शन्द ये तीन शुभ और तीन अशुंभ | इन छ. पर.राग और छः पर द्वेष, ये श्रोत्रेन्द्रिय के बारह विकार है।..:.:.., - चक्षुइन्द्रिय के साठ--ऊपर लिखे पाँच विषयों के सचित्त अचित्त
और मिश्र के भेद से पन्द्रह और शुभ अशुभ के भेद से तीस । तीस पर रांग और तीस पर द्वेष होने से साठ विकार होते हैं।
घाणेन्द्रिय के बारह--ऊपर लिखे दो विषयों के सचित्त, अचित्त और मिश्र के मेद से छह । इन छह के राग और द्वेप के मे दसे बारह भेद होते हैं। . . . : - 'रसनेन्द्रिय के साठ-चतुइन्द्रिय के समान है। . स्पर्शनेद्रिय के ध्यानवे--आठविपयों के सचित्त, अचित्त और
मिश्र के भेद से चौबीस । शुभ और अशुभ के भेद से अड़तालीस । • ये अड़तालीस राग और द्वेष के भेद.से छयानवे होते हैं।